जानवरों के हमले से आए दिन किसी ना किसी की मौत की खबरें अब आम हो गई हैं। जंगली जानवर आबादी वाले क्षेत्रों में घूमते दिखाई देना भी आम हो गया है। क्या यह सही है? क्या उन जानवरों की सही जगह यही भीड़ भाड़ का इलाका है?
सच कहें तो कहीं-न-कहीं यह मानवीय गलतियों का नतीजा भी है। अवैध तरीके से पेडों का कटान, जंगलों के जलकर राख होना, जानवरों का आश्रय छीन जाना, उनके लिए भोजन की व्यवस्था न हो पाना, आदि कई समस्याओं के कारण ये जंगली जानवर मानव बस्ती में घुसकर जन हानि कर रहे हैं। इंसानों ने विगत कुछ दशकों में जानवरों का घर तबाह कर दिया है ।
जानवर लगता है जैसे इसी बात से आक्रोशित और नाराज हैं कि उनके आश्रय छीन गए हैं। जानवरों ने जिस तरह से जनमानस को क्षति पहुंचाई है यह बेहद कष्टदायक है।
अल्मोडा़ नगर की बात करें तो पांडेखोला में तेंदुआ घूमते हुए आए दिन नजर आ रहा है।फलसीमा में काफी समय से तेंदुआ का परिवार घूमते दिखाई दे रहा था, जिसमें से एक तेंदुआ अब पकड़ लिया गया है। विगत दिवस धौलछीना ब्लॉक के डुंगरी गांव में सोमवार को ढाई साल के मासूम को तेंदुआ मां की गोद से उठाकर ले गया। बताया जा रहा है कि उस नन्हे बालक की मां अपने घर के आंगन में बैठकर मासूम को दूध पिला रही थी। तभी एक आदमखोर तेंदुआ आया और उस नन्हे बालक को जंगल की तरफ घसीट ले गया। तेंदुए को देख मां की चीख पुकार सुनकर ग्रामीण जंगल की ओर दौड़ पडे़। ग्रामीणों को घर से करीब तीन सौ मीटर दूर जंगल में मासूम का शव बरामद हुआ, जो कष्टदायक है। इसपर नाराजगी जताते हुए ग्रामीणों ने सड़क जाम भी कर दी। बाद में प्रशासन और वन अधिकारियों ने उक्त स्थल का दौरा किया।
वहीं हल्द्वानी गौलापार क्षेत्र में खेत से फसल को नुकसान पहुंचा रहे हाथी को भगाने गई महिला को हाथी ने पटक कर मौत के घाट उतार दिया। विगत माह से हल्द्वानी के गौलापार क्षेत्र में हाथियों का व्यवहार बदला है। वह जनता को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हर दिन कोई न कोई घटना उनसे हमें सुनने को मिल रही है। कटखने बंदरों ने दिन- प्रतिदिन आक्रामक होकर लोगों को काटना शुरू किया है। नतीजा यह निकला है कि अब बंदर की डर से लोगों का घर से निकलना दुर्भर हुआ है। वहीं सुअर हरी भरी खेती को उजाड़ रहे हैं। कृषकों को सबसे अधिक हानि हो रही है। शहर में आवारा कुत्ते लोगों को काट रहें । अल्मोड़ा में अक्सर कुत्तों के काटने से लोगों में डर का माहौल है। क्या यह सब उचित है? क्या प्रशासन का कोई दायित्व नहीं बनता कि वह इन जंगली जानवरों के संबंध में कोई ठोस पहल करे। क्या इन जानवरों के लिए एक अलग स्थान, एक रिजर्व फौरेस्ट नहीं होना चाहिए? ऐसे बहुत से सवाल खडे़ होते हैं। बहरहाल लोगों में भय का माहौल है। इसका तीव्र समाधान होना ही चाहिए।
आबादी वाले क्षेत्रों में जानवरों का ऐसे दिन दहाडे़ घूमना उनकी इन्सानों से निडरता को और इंसानों की लाचारी को दिखाता है। हम घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं ये लाचारी नहीं तो और क्या है? प्रशासन को इसके लिए अब कड़े कदम उठाने ही चाहिए। लोगों के बसासत वाले क्षेत्रों से इन जंगली जानवरों को दूर कहीं सुरक्षित स्थान पर ले जाकर रखना चाहिए, उनके लिए भोजन की व्यवस्था करवानी चाहिए, फलदार वनों का रोपण किया जाना चाहिए, जिससे जानवर व इन्सान दोनों ही अपनी-अपनी जगह पर सुरक्षित रह सके।
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