पिथौरागढ़ महाविद्यालय को अलग विश्वविद्यालय बनाने को 1972 में एक बड़ा आंदोलन हुआ। इस आंदोलन में 2 व्यक्तियों की जान भी गई थी, जिसके परिणास्वरूप आगरा से हटा कर कुमाऊं विश्वविद्यालय और गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। और 2019 में भी पिथौरागढ़ में छात्रों ने एक 3 महीने लंबा आंदोलन किया था जिससे एक बार फिर लग रहा था कि इस बार पिथौरागढ़ और सीमांत को निराशा हाथ नहीं लगेगी परन्तु 49 साल पुरानी मांग एक बार फिर धरी की धरी रह गई। कुमाऊं विश्वविद्यालय के दो हिस्सों में बंटने के बाद अब पिथौरागढ़ महाविद्यालय सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा से संबद्ध होगा। इससे सीमांत जनपद के छात्रनेताओं और विद्यार्थियों में निराशा छा गई है।
पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष राकेश जोशी का कहना है कि ने प्रस्तावित विश्वविद्यालय अल्मोड़ा को देकर एक बार फिर से सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ को निराश किया है।
नैनीताल से लगभग 60 km दूर अल्मोड़ा को प्रस्तावित विश्वविद्यालय दिया गया है, जबकि पिथौरागढ़ जैसे सीमांत जनपद जिससे मुनस्यारी, धारचूला, मुवानी, चंपावत व अन्य दुर्गम क्षेत्रों में कॉलेज सीधे जुड़े हुए हैं। ऐसा करना सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की अनदेखी है। 1972 में कुमाऊं विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए सज्जनलाल शाह और सोबन सिंह को पिथौरागढ़ में ही जान गंवानी पड़ी। हमेशा की तरह आज पिथौरागढ़ की अनदेखी करके सरकार ने जनता को एक बार फिर से निराश किया है । 2019 में जनवरी माह से शुरू करते हुए हम इस मांग को लेकर 3 महीने तक आंदोलनरत रहे। तब लोकसभा चुनाव आचार संहिता के चलते मुहिम रोकी गई थी और फिर मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया।
पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष महेन्द्र रावत ने कहा कि विश्वविद्यालय सुविधाजनक स्थल पर बनाना चाहिए था। पिथौरागढ़ में विश्वविद्यालय की स्थापना होने से न केवल पिथौरागढ़ बल्कि चंपावत जिले के छात्रों को भी सुविधा मिलती। अल्मोड़ा में अलग विश्वविद्यालय बनाने से घोर निराशा हुई है। आगे भी अलग विश्वविद्यालय को लेकर संघर्ष जारी रहेगा।
One Reply to “पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष राकेश जोशी और महेंद्र रावत ने विश्वविद्यालय पिथौरागढ़ में ना बनाकर अल्मोड़ा बनाने के फैसले पर निराशा व्यक्त की”
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