अमेरिका के रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार में कच्चे तेल का भंडारण करने की है भारत की योजना। अधिकारियों से मिली सूचना के मुताबिक इस कच्चे तेल का उपयोग न सिर्फ आपात स्थिति में किया जाएगा, बल्कि किसी तरह का मूल्य लाभ होने पर व्यापार के लिए भी किया जाएगा।
अमेरिका और भारत ने 17 जुलाई को आपातकालीन कच्चे तेल भंडारण पर सहयोग के लिए शुरुआती करार किया है। इसमें भारत की ओर से अमेरिका में कच्चे तेल का भंडारण करने की संभावना भी शामिल है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा है कि यह एक अच्छी अवधारणा है लेकिन इसके लिए कई शर्तें हैं। सबसे पहले भारत को अमेरिका में तेल भंडारण के लिए किराया देना होगा।
कच्चे तेल का यह किराया अंतरराष्ट्रीय कीमत के ऊपरी स्तर पर होगा। अधिकारी ने कहा कि इसका दूसरा रास्ता है कि हम अपना रणनीतिक भंडार बनाएं लेकिन इसमें काफी रुपए खर्च करने पड़ेंगे और इस बनाने में कुछ साल लगेंगे। ऐसे में तत्काल रणनीतिक भंडारण के लिए किराया देना ज्यादा अच्छा विकल्प रहेगा।
अमेरिका में रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार का निर्माण और रखरखाव निजी कंपनियां करती हैं। कोई देश अमेरिका में भंडारित तेल का इस्तेमाल खुद की जरूरत या कीमत के मोर्चे पर फायदा होने की स्थिति में व्यापार के लिए कर सकता है। अधिकारी ने कहा कि अगर तेल की कीमतें गिरेंगी तो इसका नुकसान भी होता है।
अधिकारी ने बताया कि अगर किसी कारण समुद्री रास्ता बाधित होता है तो अमेरिका में भंडारण से भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर कोई असर नहीं पड़ने वाला, क्योंकि आप अपने भंडार का लाभ नहीं ले सकते। अमेरिका से कच्चा तेल मंगाने में एक महीने का समय लग जाता है।
उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका में कच्चे तेल का भंडारण एक तरह से कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचाव के लिए की जाने वाली हेजिंग है। अधिकारी ने कहा कि सबसे जरूरतमंद बात यह है कि बड़ी मात्रा में भंडारण के लिए कच्चे तेल की खरीद को अग्रिम भुगतान करना होता है। ऐसे में कंपनियों को काफी बड़ी पूंजी ब्लॉक करनी पड़ती है।
भारत ने कुछ महीने पहले अमेरिका में कच्चे तेल का भंडारण करने की संभावना पर विचार किया था लेकिन कोविड-19 के बीच मांग में भारी गिरावट के चलते इस दिशा में ज्यादा प्रगति नहीं हो पाई। मांग घटने की वजह से दुनिया भर के भंडारगृह और यहां तक कि जहाजों के भंडार गृह भी पूरी तरह भर गए थे।