चीन की हरकतों का भारत ने उसे हमेशा मुंहतोड़ जवाब दिया है। गलवान घाटी में हिंसा के बाद भारत ने उसे आर्थिक झटके दे कर मुंहतोड़ जवाब दिया है। अब ITBP के जवान चीन को उसी की भाषा में जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं। ITBP के 90 हजार जवानों को चीन की मंदारिन भाषा सिखाने की तैयारी चल रही है। उन्हें अडवांस मंदारिन भाषा की ट्रेनिंग दी जाएगी। अभी तक सीमा पर चीन के सैनिकों को अपनी बात समझाने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसके लिए जवान पोस्टरों का इस्तेमाल करते हैं।
जब चीनी सैनिक घुसपैठ करते हैं तो आईटीबीपी उन्हें लाल रंग का पोस्टर दिखाती है जिसपर ‘गो बैक’ लिखा जाता है। चीनी भाषा की ट्रेनिंग के बाद जवानों को आसानी होगी और वे सीधा उन्हें वापस जाने की चेतावनी दे सकेंगे। मंदारिन भाषा में ‘नी हाओ’ का मतलब ‘नमस्कार’ होता है और ‘हुऊ कू’ का अर्थ ‘वापस जाओ’ होता है।
चीन के जवान अपनी भाषा में आपस में बात करते हैं और भारतीय सैनिकों को वह किस विषय में बात कर रहें हैं इस बात का पता भी नहीं चल पाता। इसके चलते कम्युनिकेशन गैप होता है और अधिकारियों तक योजना की जानकारी नहीं पहुंच पाती है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि मंदारिन भाषा दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है। यह भाषा काफी पुरानी है। चीन में कई तरह के प्रतिबंध भी हैं इसके चलते लोग चीनी भाषा का ही ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। यहां तक कि उन्हें फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया एप्पस के इस्तेमाल की भी अनुमति नहीं है।
आईटीबीपी ने मसूरी की अकादमी में इस कोर्स की शुरुआत करने की पूरी तैयारी कर ली है। कोरोना के चलते अभी यह शुरू नहीं हो पाया। इस कोर्स का उद्देश्य सीमा पर बेहतर संवाद स्थापित कर पाना होगा। आईटीबीपी के हर जवान को यह कोर्स पूरा करना होगा। पहले भी कुछ जवानों की इसकी ट्रेनिंग दी जाती थी लेकिन संख्या काफी कम थी। अब कोर्स का नया प्रारूप तैयार किया जा रहा है। अभी तक जवान मामूली मंदारिन भाषा जानते हैं।