क्या है कॉपरेटिव बैंक और कॉपरेटिव सोसाइटी ?

संवाददाता – अंकित तिवारी

कॉपरेटिव बैंक बनाम कोऑपरेटिव सोसायटी
कॉपरेटिव होते हैं जो एक निश्चित गोल को पाने के लिए बनाए जाते हैं उदाहरण के तौर पर एक छोटे से गांव में 10 छोटे छोटे किसान रहते हैं जो कि अपना अनाज बाजार तक नहीं ले जा सकते तो वह सभी लोग मिलकर अपना आनाज इकट्ठा करके बाजार में थे आते हैं और जो प्रॉफिट होता है उसे सब में बांट देते हैं इसी आधार पर कोऑपरेटिव चलता है ।
कॉपरेटिव बैंक और कोऑपरेटिव सोसायटी दोनों अलग-अलग होते हैं आइए जानते हैं कैसे?
कोऑपरेटिव सोसाइटी कोऑपरेटिव सोसायटी एक्ट 1914 के तहत पंजीकृत होते हैं कोऑपरेटिव सोसायटी एक राज्य में अथवा एक से अधिक राज्य में भी हो सकती है अगर आपकी कोऑपरेटिव सोसायटी सिर्फ एक राज्य में है तो उस राज्य के को ऑपरेटिव सोसाइटी एक्ट के तहत पंजीकृत कराना होता है हर राज्य का अपना अलग ऑपरेटिव सोसाइटी एक्ट होता है । और यह कोऑपरेटिव सोसायटी भी कई प्रकार की हो सकती हैं जैसे कंजूमर सोसाइटी , प्रोड्यूसर कोऑपरेटिव सोसायटी ,मार्केटिंग कोऑपरेटिव सोसायटी , क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसायटी , हाउसिंग कोऑपरेटिव सोसाइटी ।
यदि कोई क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी बैंक के लाइसेंस के लिए आगे आना चाहती है तो उसको यह लाइसेंस रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के द्वारा दिया जाता है और आरबीआई ही इसका रेगुलेशन करता है इस तरह के बैंकों में कोऑपरेटिव सोसायटी एक्ट 1965, बेंकिंग एक्ट 1949 भी लागू होते है । अप कोऑपरेटिव बैंक भी कुछ ग्रामीण होते हैं और कुछ शहरी होते हैं । जो ग्रामीण कॉपरेटिव बैंक होते हैं उनका का मुख्यतः एग्रीकल्चरल क्षेत्र से संबंधित काम होता है। ग्रामीण कॉपरेटिव बैंक भी दो तरीके से होते हैं शॉर्ट टर्म कोऑपरेटिव और लॉन्ग टर्म कॉपरेटिव बैंक।
पहले बात करेंगे शॉर्ट टर्म को ऑपरेटिव बैंक की तो इसमें सबसे पहले होता है स्टेट लेवल कोऑपरेटिव बैंक जोकि पूरे राज्य के कॉपरेटिव बैंक का सर्वे सर्वा होता है और उन पर नजर रखता है और यह पूरे राज्य का सिर्फ एक होता है अगला आता है डिस्टिक कोऑपरेटिव बैंक और उससे छोटे स्तर पर काम करता है प्रायमरी एग्रीकल्चर कोऑपरेटिव सोसायटी जोकि गांव में बीज खाद वगैरह प्रदान करती है । यहां शॉर्ट टर्म का मतलब है कम समय के लिए ऋण देने वाली।
लॉन्ग टर्म दो प्रकार का होता है
1 SCARDB
2 PCARDB
अब हम बात करें अर्बन कॉपरेटिव बैंक की तो यह दो प्रकार के होते हैं शेड्यूल और नॉन शेड्यूल शेड्यूल कॉपरेटिव बैंक होते है जिनका बिजनेस 7.5 सौ करोड़ से कम ना हो और एन पी ए 5% से अधिक ना हो 3 साल का कन्ज्यूगेट सर्टिफिकेट मिला हो शेड्यूल बैंक को आरबीआई से सस्ती दरों पर ऋण मिलता है ।और नॉन शेड्यूल बैंक में पैसे रखना बहुत घातक होता है। इन दोनों बैंक ही मल्टी स्टेट को ऑपरेटिव बैंक भी हो सकते हैं। भारत में कुल 95k कोऑपरेटिव सोसाइटी 15k कॉपरेटिव बैंक हैं।
हमें अपना पैसा शेड्यूल कोपर्डी बैंक में ही रखना चाहिए आरबीआई की साइड में जाकर देखना चाहिए कोऑपरेटिव सोसाइटी में पैसा रखना थोड़ा महंगा हो सकता है। हालांकि पीएमसी कॉपरेटिव बैंक और राजस्थान कोऑपरेटिव सोसायटी जैसे घोटाले आरबीआई जैसी संस्था को भी ध्यान केंद्रित करे हुए हैं यही कारण भी होता है कि कोऑपरेटिव सोसाइटी और कई कोऑपरेटिव बैंक आप के एमडी और सेविंग अकाउंट में ज्यादा ब्याज देते हैं और बाद में उनका एनपीए बढ़ जाता है तो आपके पैसे डूबने के चांस ज्यादा रहते हैं हालांकि कुछ कोऑपरेटिव बैंक में राज्य सरकार के भी शेयर होते हैं किन्तु अपना पैसा सोच समझकर सही जगह पर सही बैंक में रखें जो कि आरबीआई के शेड्यूल बैंक की की लिस्ट में आता हो जिसका एनपीए कम हो।

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