“माँ”- विकास बिष्ट की रचना

माँ मैने एक बार नहीं अनेक बार देखा है।
हमको हँसा कर तुझको रोते हुए देखा है।
हमको खिला कर तुझको भूखा रहते हुए देखा है।
माँ मैने तुझको अपने आंसू छिपा कर हमको हंसाते हुए देखा है।
माँ मैने तुझको ठंड में कापते हुए हमको अपने आँचल में सुलाते हुए देखा है।
माँ मैने तुझको तपती धूप में रह कर भी हमको छाव में बैठाते हुए देखा है।
माँ तूने खुद अंधेरे में रख कर हमको उजाले में जीना सिखाया है।
माँ मैने तुझमें ही भगवान का रुप एक बार नहीं अनेक बार देखा है।

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