अमर शहीद, स्वतंत्रता सेनानी श्री देव सुमन के बलिदान दिवस पर उन्हें नमन, जानें उनके विशिष्ट व्यक्तितव के बारे में इस रिपोर्ट में

रिपोर्ट – रक्षिता बोरा

एक वीर उस पुण्य भूमि का जिसे देवभूमि उत्तराखंड कहा जाता है। श्री देव सुमन किसी परिचय के मोहताज नहीं है।
उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के जाउल गाँव के पाटी बामुंड मे जन्मे एक सामाजिक कार्यकर्ता श्री देव सुमन। जब पूरा भारत ब्रिटिश सरकार से शासन से मुक्त होने के लिए लड़ रहा था, सुमन इस बात की वकालत कर रहे थे कि टिहरी रियासत गढ़वाल के राजा के शासन से मुक्त हो। वह गांधी के बहुत बड़े प्रशंसक थे और उन्होंने टिहरी की आजादी के लिए अहिंसा का रास्ता अपनाया 1942 गांधी जी से भी मिले । इससे पहले वे 1930 मे नामक सत्याग्रह मे भाग ले चुके थे, 1938 मे श्रीनगर सम्मेलन मे भी भाग लेने के बाद जनवरी 1939 मे देहेरादून के प्रजा मण्डत मे भी शामिल थे। टिहरी के राजा के साथ अपनी लड़ाई के दौरान “बोलंदा बद्री” के रूप में, उन्होंने टिहरी के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की। 30 दिसंबर 1943 को, उन्हें विद्रोही घोषित किया गया और टिहरी राज्य द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में, सुमन को प्रताड़ित किया गया था, उन्हें बहुत भारी कष्ट दिए गए थे, पत्थर के टुकड़े उनके भोजन के साथ मिलाए गए थे, रेत मिश्रित रोटी भी उन्हें दी गई थी, और कई और यातनाएं जेलर मोहन सिंह और अन्य कर्मचारियों द्वारा उन्हें दी गई थीं। तब उन्होंने 3 मई 1944 को भूख हड़ताल पर जाने का फैसला किया। जेल के कर्मचारियों ने उन्हें जबरन खाना और पानी देने की कोशिश की जिसमें वे असफल रहे। 209 दिनों के लिए जेल में रहने के बाद, और 84 दिनों कि भूख हड़ताल के बाद, 25 जुलाई 1944 को श्री देव सुमन ने अपने प्राण त्याग दिये। उनके शव को अंतिम संस्कार के बिना ही भिलंगना नदी में फेंक दिया गया था ।
कहते हैं समय के आगे किसी की नही चलती वही भी हुआ, सुमन की कुछ मांगे राजा ने नही मानी, सुमन जो जनता के हक के लिए लड़ रहे थे राजा ने ध्यान नही दिया, आज न राजा का महल रहा, न राजा के पास सिंहासन। और वह टिहरी नगरी आज पानी में समां गई है। पर हमेशा याद रहेगा वह बलिदान और हमेशा याद आयेगा क्रूर राजा।

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