“स्त्री”
मैं स्त्री हूं कोई खिलौना नहीं
तो फिर क्यों ये सौदा हो रहा…?
हर गली चौराहे पर ये
कैसा व्यापार हो रहा….
खोटी उसकी नियत हैं
तो दोषी मुझे क्यों कहाँ जा रहा.?
क्यों आज भी इस दुनिया में..?
मेरा सौदा हो रहा
द्रोपती के सम्मान के लिए
धर्म युद्ध का संचालन हुआ
मैं तो इस युग में जी रही…
जहाँ यह सब भी व्यर्थ रहा.
ये है शिक्षितों की दुनिया
जहाँ रिस्तो का अब कोई मोल न रहा
मैं कह रही हूं अब माँ से
क्यों बार -बार मेरे साथ ये सब हो रहा……
-किरन जोशी