कोरोना से दिल्ली में 27 वर्ष के डॉक्टर की मौत चंदा जुटा कर भी नहीं बचा पाए जान

रिपोर्ट – किरन जोशी
दिल्ली सरकार के भीमराव अंबेडकर अस्पताल में काम करने वाले रेजिडेंट डॉक्टर की रविवार को कोरोना से मौत हो गई। डॉक्टर जोगिंदर चौधरी एक एमबीबीएस थे वे अभी सिर्फ 27 वर्ष के थे । डॉक्टर जोगेंद्र मध्यप्रदेश के नीमच जिले के रहने वाले थे। वह पिछले छह महीनों से दिल्ली सरकार द्वारा संचालित डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर मेडिकल हॉस्पिटल एंड कॉलेज में एडहॉक के आधार पर काम कर रहे थे। तबीयत बिगड़ने से पूर्व वह 23 जून तक अस्पताल के फ़्लू क्लीनिक और फिर कैजुअल्टी वार्ड में काम कर रहे थे। उनका एक महीने से आईसीयू में इलाज चल रहा था। डॉक्टर जोगेंद्र मध्यप्रदेश के नीमच जिले के रहने वाले थे।
डॉक्टर जोगिंदर के पिता ने बताया कि बेटे के इलाज का खर्च साढ़े चार लाख तक आया । पिता ने यह भी बताया कि शुरू में हमने एक लाख रुपये दिए, लेकिन हम बेहद गरीब परिवार से हैं। बेटे को एमबीबीएस पढ़ाने के लिए लोन भी लिया था। ऐसे में अधिक पैसों का इंतजाम नहीं हो पा रहा था। उनके दोस्तों और अलग अलग अस्पताल के डॉक्टरों ने करीब साढ़े तीन लाख रुपये इलाज के लिए एकत्र किए थे।
उनका बेटा अक्तूबर में ही दिल्ली सरकार के अस्पताल में काम पर लगा था। बेटे की मौत से परिजनों का बुरा हाल है।
उनकी कोरोना रिपोर्ट 27 जून को पॉजिटिव आई थी। सबसे पहले उन्हें सांस लेने में दिक्कत हुई, जिसके बाद उन्हें बीसीए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 27 जून को जोगिंदर को अंबेडकर अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन डॉक्टरों ने कहा कि हालत गंभीर है और उन्हें एलएनजेपी अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया। 30 जून को एलएनजेपी के डॉक्टरों ने उनके पिता को बताया कि जोगिंदर को वेंटिलेटर पर रखना होगा। उनके फेफड़ों में एक छेद विकसित हो गया है। इसके बाद 8 जुलाई को उन्हें सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती करवाया गया।
जोगिंदर के परिजनों ने दिल्ली सरकार के अस्पताल में काम के दौरान कोरोना की चपेट में आकर जान गंवाने वाले डॉक्टर जोगिंदर के लिए एक करोड़ रुपये देने की मांग की है। एम्स के असिस्टेंट प्रोफेसर विजय गुर्जर का कहना है कि एक डॉक्टर को दो सरकारी अस्पताल में इलाज के बाद निजी अस्पताल ले जाना पड़ा। अगर सरकारी अस्पताल की सुविधा बेहतर होती या एडहॉक पर काम करने वाले डॉक्टर के लिए मेडिकल बीमा होता तो शायद उनका बेहतर इलाज होता। साथ ही परिवार को भी कष्ट नहीं झेलना पड़ता।

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