“टाइगर हिल के टाइगर” – सूबेदार मेजर विक्रम सिंह खनी के द्वारा भारत मां के वीर सपूतों को समर्पित स्वरचित कविता

कारगिल दिवस पर कारगिल में अपना सर्वोच्च बलिदान देने
वाले भारत माँ के अमर वीर सपूतों को समर्पित कविता |
टाइगर हिल के टाइगर
कारगिल की पहाड़ी पर, वीरों ने कर दिया घमासान |
दुश्मन की आँख तब खुली, जब वह हो गया श्मशान ||
दूसरों के रहमोकरम पर, वे हमसे लोहा लेने आए |
भारत माँ के वीर सपूतों ने, उनके छक्के छुड़ाए ||
श्वेतांबर सरीखे नग पर, बोफोर्स तोपें गरजी |
भाग खड़े हुए सभी घुसपैठिए, जो थे पाकिस्तानी फरजी ||
जात, पात, सम्प्रदाय का भेद भुलाकर, लड़े भारत के वीर |
क्षण भर में ही सबने मिलकर, बदल दी तकदीर ||
टाइगर के माथे पर बैठा, दुश्मन हो गया था मगरूर |
भारत माँ के रणबाकुरों ने किया, घमण्ड उसका चकनाचूर ||
लहुलुहान हो गयी धरा, दुश्मन हो गया मजबूर |
चोटी पर बैठा वह, हो गया दुम दिखाने को मजबूर ||
चन्द घुसपैठियाें के बल पर उसने सोचा था कश्मीर ले लेंगे |
मगर उसे क्या पता था, माँ भारत के वीर उसे सबक सिखाएगें ||
याद करेगा दुश्मन, जब तब उसका अस्तित्व रहेगा |
भविष्य में फिर न कभी वह, हमें टेड़ी आँख दिखाएगा ||
मातृभूमि की रक्षा हेतु, कर दिया प्राणों का बलिदान |
सौरमण्डल में गूँज रहा है, वीरों के यश का जयगान ||
करोड़ों भारत वासी वीरों को शीश झुकाते हैं|
अमर वीर सपूतों को मन मन्दिर में बैठाते हैं ||
-अॉ. सूबेदार मेजर विक्रम सिंह खनी AEC (Retd)

 

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