कारगिल दिवस पर कारगिल में अपना सर्वोच्च बलिदान देने
वाले भारत माँ के अमर वीर सपूतों को समर्पित कविता |
टाइगर हिल के टाइगर
कारगिल की पहाड़ी पर, वीरों ने कर दिया घमासान |
दुश्मन की आँख तब खुली, जब वह हो गया श्मशान ||
दूसरों के रहमोकरम पर, वे हमसे लोहा लेने आए |
भारत माँ के वीर सपूतों ने, उनके छक्के छुड़ाए ||
श्वेतांबर सरीखे नग पर, बोफोर्स तोपें गरजी |
भाग खड़े हुए सभी घुसपैठिए, जो थे पाकिस्तानी फरजी ||
जात, पात, सम्प्रदाय का भेद भुलाकर, लड़े भारत के वीर |
क्षण भर में ही सबने मिलकर, बदल दी तकदीर ||
टाइगर के माथे पर बैठा, दुश्मन हो गया था मगरूर |
भारत माँ के रणबाकुरों ने किया, घमण्ड उसका चकनाचूर ||
लहुलुहान हो गयी धरा, दुश्मन हो गया मजबूर |
चोटी पर बैठा वह, हो गया दुम दिखाने को मजबूर ||
चन्द घुसपैठियाें के बल पर उसने सोचा था कश्मीर ले लेंगे |
मगर उसे क्या पता था, माँ भारत के वीर उसे सबक सिखाएगें ||
याद करेगा दुश्मन, जब तब उसका अस्तित्व रहेगा |
भविष्य में फिर न कभी वह, हमें टेड़ी आँख दिखाएगा ||
मातृभूमि की रक्षा हेतु, कर दिया प्राणों का बलिदान |
सौरमण्डल में गूँज रहा है, वीरों के यश का जयगान ||
करोड़ों भारत वासी वीरों को शीश झुकाते हैं|
अमर वीर सपूतों को मन मन्दिर में बैठाते हैं ||
-अॉ. सूबेदार मेजर विक्रम सिंह खनी AEC (Retd)