
रिपोर्ट – मदन मोहन तिवारी,पथिक
देश में दिन-प्रतिदिन कोरोना संक्रमित की संख्या बढ़ने से हालात बिगड़ते जा रहे हैं हालांकि सरकारी एवं समस्त प्रशासनिक अमला पुरजोर कोशिश कर रहा है किंतु तब भी उतने सकारात्मक प्रयास नहीं दिख रहे हैं केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों ने भी एक साथ मिलकर इस लड़ाई के खिलाफ जंग लड़ी है फिर भी इस भयानक महामारी से अब तक छुटकारा मिल पाना संभव नहीं हो पाया है हालांकि कई विश्वस्तरीय वैज्ञानिक एवं विश्वविद्यालय इस महामारी के लिए दवा बनाने पर भी कार्य कर रहे हैं और उम्मीद है कि जल्द ही इस पर सफलता प्राप्त होगी किंतु प्रश्न यह है कि वर्तमान में हम इस वायरस के सामने कहां खड़े हैं और कैसे इस कोरोना वायरस से लड़ा जाए जहां तक मेरा मानना है इस महामारी से बचने का सबसे बेहतर उपाय है कि प्रत्येक व्यक्ति स्वविवेक से इस महामारी से लड़े स्वविवेक को जगाने के लिए आत्मचिंतन करना पड़ेगा आत्म चिंतन के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति स्वयं को भौतिक जगत से परे रखकर सोचे उन समस्त भौतिक संसाधनों से दूर रहे जो समस्त भौतिक संसाधन उसे विलासिता की ओर ले जाते हैं आज का भौतिक जगत हमें पूर्ण रूप से विलासिता की ओर ले जाता है इसलिए इन भौतिक सुख सुविधाओं से दूर रहकर हमें आत्म चिंतन करने की आवश्यकता है आत्मचिंतन से स्वतः ही ज्ञानेंद्रियां सकारात्मक रूप में क्रियान्वित होंगी और स्वतः ही समस्त लोग उस प्रत्येक कार्य को करने से बचेंगे जो हमें इस कोरोना महामारी की ओर ले जाते हैं भारत जैसे विशाल देश में यह संभव नहीं है कि हम लोग सामाजिक दूरी का पालन पूर्ण रूप से कर सकें क्योंकि जीवित रहने के लिए दिन प्रतिदिन के कार्यों को करना भी आवश्यक है और भारत में किसी भी तबके का व्यक्ति क्यों ना हो बाहर का सामाजिक जीवन कठिनाइयों भरा ही है क्योंकि हम लोग अव्यवस्थाओं में रहने के आदि हो चुके हैं और इन अव्यवस्थाओं से हम लोग अपने जीवन को पूर्व से ही असुरक्षा की ओर धकेलते चले आए हैं बस पूर्व में और वर्तमान में केवल एक अंतर है की कोरोनावायरस ने हमें उस असुरक्षा का ज्ञान कराया है जिससे आज हम इस जीवन में असुरक्षित महसूस करने लगे हैं लेकिन भारत जैसे विकासशील देश में यह जरूरी भी हो गया है कि अब हमें अपने रोजमर्रा के जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए घरों से बाहर निकलना भी जरूरी है और अपने रोजमर्रा के कार्यों को करना भी जरूरी है इसलिए सामाजिक दूरी के साथ अपने इन कार्यों का क्रियान्वयन संभव नहीं है अतः स्वविवेक से प्रत्येक व्यक्ति निश्चित करें और स्वयं से प्रश्न करे कि उसे कब बाहर निकलना है क्यों बाहर निकलना है कहां खाना है कहां बैठना है कैसे बात करना है कैसे लोगों से मिलना है कैसे अपने को स्वच्छ रखना है यही क्या फिर क्यों मैं बदले फिर क्यों से कब हो कब से कहां हो कहां से किस लिए हो और और किस लिए से किस प्रकार हो। प्रत्येक व्यक्ति यह सोचे किस प्रकार से अपने संपूर्ण जीवन को प्रत्येक दिन क्रियान्वित करना है कुल मिलाकर यह कह सकते हैं किस सही और गलत की पहचान ही हमें इस महामारी से बचा सकती है अतः स्वविवेक से यह पता लगाना होगा कि इस कोरोना वायरस से बचने के लिए क्या सही है और क्या गलत है जब हमें सही एवं गलत की पहचान अंतर्मन से होने लगेगी तो स्वयं ही हम अपने आप को इस बीमारी से सुरक्षित महसूस करने लगेंगे और हमारे भीतर से एक सकारात्मक ऊर्जा का आगमन होने लगेगा और यही सकारात्मक ऊर्जा हमें सही कार्यों की ओर प्रदत्त करेगी और प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को सुरक्षित महसूस करने लगेगा आज प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्तर से इस महामारी से लड़ना होगा और अन्य लोगों को भी इस लड़ाई में डटे रहने के लिए भरसक प्रयास करना होगा पिछले 3 माह माह में यह देखा गया है कि केवल लॉकडाउन जैसी स्थिति का भी लोग भली-भांति पालन नहीं कर पाए हैं स्वविवेक से लोगों को यह सोचना होगा कि लॉक डाउन का पालन करना क्यों जरूरी है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को जागरूकता फैलाने में भी संपूर्ण योगदान देना चाहिए जिससे वह स्वयं को और अन्य लोगों को भी इस कोरोना महामारी से दूर रख सके यह सभी कार्य स्वविवेक से ही सही प्रकार से क्रियान्वित हो सकते हैं और इस प्रकार से कोरोना महामारी से भी बचा जा सकता है इसके अलावा कुछ अन्य प्रयास भी हैं जो सरकार को अपने स्तर से जैसे सही प्रकार प्रकार से प्रबंधन एवं निर्देशन करना होगा जिससे समस्त नागरिकों में भटकाव की स्थिति उत्पन्न ना हो एवं नागरिकों को भी यह जरूरी है कि आत्म चिंतन करें कि क्यों प्रशासन के द्वारा समय-समय पर भिन्न भिन्न प्रकार से निर्देश दिए जा रहे हैं और यह निर्देश हमारे लिए कितनी जरूरी है भारत ने पूर्व में भी कई प्रकार के संकटों का एकता के साथ सामना किया है तो आज भी जरूरी है कि समस्त नागरिक समस्त जातियों धर्मों भाषाओं आदि को भुलाकर केवल एक भारतीय नागरिक होने के नाते यह सोचे कि उसका स्वयं का कार्य क्या बनता है स्वयं का दायित्व क्या बनता है जब समस्त देश संकट में हो और यह ज्ञान तभी उस व्यक्ति को हो सकता है जब वह स्वविवेक से आत्म चिंतन करेगा और जब प्रत्येक व्यक्ति को यह ज्ञान हो जाएगा कि यह जीवन कितना अनमोल है और कैसे इस विषम परिस्थितियों में इस भयावह संकट की घड़ी में वह कैसे अपनी इस जीवन को बचा सकता है स्वयं ही उसकी समस्त ज्ञानेंद्रियां उस कार्य में लग जाएंगी जिनसे इस महामारी से बचा जा सकता है।