“बेटी” – मानसी जोशी की शानदार स्वरचित कविता, जरूर पढ़ें

बेटी
जब मै पैदा हुई,
ना जाने क्या बात थी?
खुशी की जगह
ग़म का माहौल था
ना जाने क्यों?
सबका सपना टूट गया।
बेटे की चाहत थी,
सबको…………..
पर,
ना जाने क्यों,
भाग्य विधाता को क्या मंजूर था,
जो,
उसने मुझे पैदा क्या,
मां भी दुःखी थी,
सबका सपना टूट जाने पर,
पर,
खुशी थी उसे
की, एक और सीता पैदा हुई
इस धरती पर
एक अलग सी खुशी थी……
उसके चेहरे पर
ना जाने क्या बात थी?
मुझमें, की
इतना प्यार दिया मुझे उसने
खुद ज़मीन पर सोकर
मुझे चटाई में सुलाती थी
खुद खाना ना खाकर
वह मुझे खिलाती थी,
मेरी हर खुशी का
ख्याल वह रखती थी
पर……….
ना जाने क्या बात थी
कि परिवार ने मुझे स्वीकार किया
तुम बेटी हो
यही एहसास दिलाया
लेकिन………
जब मैं धीरे धीरे बड़ी हुई
लोग भी मुझे सुनाने लगे
कहा –
यही वो लड़की है
जो परिवार में
बर्बादी बनकर आयी है
ना जाने क्या गुल खिलाएगी
बदनामी की और अपने परिवार को ले जाएगी
लेकिन…….
मैने भी ठान लिया
जग में नाम कमाऊंगी
परिवार का नाम रोशन करूंगी
बेटी होने का मूल्य मै बताऊंगी
पर…..
साथ ना दे रहा होगा
उसका कोई
इस लड़ाई में
समाज में बदनाम हो रही होगी
पर…..
दुनिया से वह लड़ रही होगी
मैं उन बेटियों के साथ हूं
जो संघर्ष कर रही है
अपने अमूल्य जीवन में
काश!
समझ पाता कोई बेटी
के महत्व को
कि,
वो ही आगे चलकर बन जाती है
राष्ट्र की भाग्यविधाता
पर…..
क्या हम बेटे की तुलना
बेटी से कर सकते हैं
क्या!
हम बेटे की तुलना
बेटी से कर सकते हैं
क्या? बेटी की तरह दुनिया का नाम
रोशन कर पाते हैं बेटे
बस…………….
इन्ही अनेक फर्क से बेटी को
बेटे से अमूल्य समझा जाता है
जितना काम बेटी एक दिन में
कर दिखाती है
बेटा उसे एक साल में भी पूरा
नहीं कर पाता है
लेकिन……….
फिर भी बेटी को समाज में
नीचा दिखाया जाता है
अगर!
वह शाम को घर देर से लौटती है तो उसे बुरा – भला कहा जाता है
पर…..
बेटा शाम को घर देर से लौटता है तो,
उसे कुछ नहीं कहा जाता है
ना जाने क्यों दुनिया में
बेटी को सब दूतकारते हैं
उसकी भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं,
लेकिन,
बेटी चुपचाप सब कुछ सहन कर लेती है।
जानती है वो……
कि,
एक दिन दुनिया में बेटी का राज चलेगा
तब,
दुनिया जान पाएगी बेटी के बिना
ये जीवन असम्भव है
लेकिन…..
तब काफी देर हो गई होगी
दुनिया को जगने में
लेकिन तब….
बेटी इंसाफ पा चुकी होगी
अपने मोर्चे को हासिल कर चुकी होगी
बेटी का संगठन बनाकर
उनकी रक्षा की कसम
वह,
खा चुकी होगी।
इतना ही नहीं………
वह देश के साथ
कदम से कदम मिलाकर
चल रही होगी
जग में नाम कमा रही होगी
बस……
यही है एक बेटी की पहचान।।
मानसी जोशी

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