“पहाड़ी शिक्षा” – 20 सालों सत्ता पर काबिज सरकारों ने पहाड़ को ठगा हुआ है…. आखिर कब ठीक होगी हमारे पहाड़ की शिक्षा व्यवस्था?

रिपोर्ट – मानसी जोशी
पहाड़ी शिक्षा
उत्तराखण्ड राज्य का गठन 9 नवंबर 2000 को हुआ था।
उत्तराखण्ड राज्य के अंतर्गत 13 जिले आते हैं , इन सभी जिलों की शिक्षा नीति में काफी अंतर पाया जाता है। उत्तराखंड पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण कहीं पर शिक्षा की स्थिति काफी दुरुस्त तो कहीं काफी खस्ता स्थिति देखी गई है।
कुछ जिलों में स्थिति ऐसी है कि मूलभूत सुविधाओं के लिए भी लोग तरस रहे हैं।
पहाड़ी क्षेत्रों के कई स्कूलों में बच्चो के खेलने के लिए मैदान नहीं है, कुछ ऐसे भी स्कूल हैं,जिनमें चारदीवरी तक नहीं बनी हुई है। पीने का पानी तक नहीं है, शौचलय की सुविधा तक नहीं है, और कहीं पे शौचलय हैं भी तो वो किसी काम के नहीं है। कई पहाड़ी क्षेत्रों में लड़कियों के लिए शौचलय की सुविधा तक नहीं है।
शिक्षा के नाम पर स्कूल तो हैं, पर बिजली, किताबें, ड्रेस, कुर्सी, टेबल आदि की व्यवस्था नहीं है।
पहाड़ी क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है,जिसका सबसे बड़ा कारण यह है कि मूलभूत सुविधाओं में भारी कमी का होना, विषय के अनुरूप शिक्षक का ना होना। अगर शिक्षक हैं भी तो स्कूलों में बच्चो की कमी का होना, जिसके चलते पहाड़ी क्षेत्रों में कई स्कूलों को बंद करने की स्थिति आ गई है।

आखिर कब सुधरेगी पहाड़ी स्कूलों कि दशा और दिशा? आखिर कब शासन और सत्ता में बैठे लोग ध्यान देंगे बेहतर स्कूली शिक्षा पर, हब हमारे गावों पहाड़ों के बच्चो को कब मिलेगी बेहतर शिक्षा?