लफ्ज से सख्सीयत हिलादे,,ऐसी उसकी औकात थी।
झूठों की हलख सुखा दे,, बस राहत में वो बात थी।
नजाकत उसकी शायराना,,आंखें उजियारी रात थी।
बुलन्द आवाज को गुंजाना,,ये राहत की ही जात थी।
कभी ना हुआ नाराज था,,चेहरा भी खुशमिजाज था।
हथेलियां मुंह पर फेरे अपनी,,राहत का कुछ राज था।
महफिलें सजा देता वो,,बेमिसाल नज्मों का साज था।
बेहरों को भी शेर सुनाता,,ये बस राहत का अंदाज था।
रूह चली गई तो क्या,,आवाज अभी उसकी सोई नहीं।
दिलों में घर बनाया है उसने,,पहचान उसकी खोई नहीं।
मानवता का पेड़ उगादे,,ऐसी बींज किसी ने बोई नहीं।
धर्म जाति से बढ़कर सोचे,,ऐसा राहत जैसा कोई नहीं।