विपिन चन्द्र त्रिपाठी का जन्म 23 फरवरी 1945 को अल्मोड़ा जिले में द्वाराहाट के गाँव डेरी में मथुरा दत्त त्रिपाठी के यहाँ हुआ था और उनकी माता का नाम कलावती देवी था। उनकी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मुक्तेश्वर, नैनीताल जिले में हुई। उन्होंने इंटरमीडिएट द्वाराहाट से ही पास किया और इलेक्ट्रिकल में डिप्लोमा का कोर्स करने के लिए हल्द्वानी चले गए।
बिपिन त्रिपाठी एक प्रसिद्ध समाजवादी कार्यकर्ता, पर्यावरणविद, उत्तराखंड राज्य के शिल्पी, उत्तराखंड क्रांति दल के थिंक टैंक और उत्तराखंड के एक पत्रकार थे। उन्होंने द्वाराहाट में डिग्री कालेज के लिए आंदोलन किए और वह इसके लिए अनशन पर भी बैठे। उन्होंने सत्ता से दूर रहते हुए भी जनता के सरोकारों और जनहित के कार्यों को आंदोलनों, अनशन और अपने अखबार के माध्यम से प्रमुखता से उठाया और उनका समाधान भी किया। उस समय वह द्रोणांचल प्रहरी के मालिक के रूप में काम कर रहे थे। यह एक पाक्षिक पत्र था, जिसे वे द्वाराहाट से ही प्रकाशित करते थे।
1967 में कुमाऊँ विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद उन्होंने समाजवादी आन्दोलन के कारण अपना बहुत कुछ फेंक दिया। वे समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने 1965 से 1969 तक नैनीताल जिले के तराई के भूमिहीन ग्रामीणों के लिए लड़ाई लड़ी। 1968-69 में उन्होंने एक पाक्षिक समाचार पत्र युवजन मशाल का प्रकाशन शुरू किया और लोगों की मांगों की प्राप्ति के लिए काम किया। उन्होंने कई मांगों को उजागर करते हुए कई सार्वजनिक आंदोलन का नेतृत्व किया। 1970 में युवजन सभा का राज्य स्तरीय सम्मेलन आयोजित किया गया। इस दौरान उन्हें उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। पहली बार अपनी रिहाई के बाद वह द्वाराहाट लौट आए और फिर उन्होंने 1971 में अपना पाक्षिक अख़बार द्रोणांचल प्रहरी शुरू किया। उन्होंने माफियाओं और स्टार पेपर मिल, लालकुआं जैसे व्यापारियों द्वारा अपने कागज के माध्यम से जंगलों की लूट के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जिसके परिणामस्वरूप प्रेस परिषद में उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। विपिन दा उत्तराखंड में वन आंदोलन के अग्रदूतों में से एक थे। 1974 में अन्य कार्यकर्ताओं के साथ उन्होंने नैनीताल में वन परिग्रहण का विरोध किया और जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अन्य 18 कार्यकर्ताओं के साथ गिरफ्तार किया गया। इस विरोध ने पूरे क्षेत्र में प्रदर्शन को भड़काने का कार्य किया। 1974 में उनके नेतृत्व में चारिधर वन को बचाने के लिए चिपको आंदोलन की सबसे बड़ी लड़ाई सहारनपुर के खिलाफ लड़ी गई थी। पेपर मिल जहां उन्होंने सफलतापूर्वक जंगल को बचाया। 1975 में आपातकाल के दौरान वह 21 महीने से अधिक समय तक जेल में रहे थे।
विपिन चन्द्र त्रिपाठी, डॉ. डीडी पंत, इंद्रमणि बडोनी और काशी सिंह ऐरी, हरि दत्त बहुगुणा के साथ उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापक सदस्य थे। पार्टी की स्थापना 26 जुलाई 1979 को नैनीताल में हुई थी। त्रिपाठी मूल रूप से एक लोकतांत्रिक व्यक्ति थे जो उत्तराखंड ( अलग पहाड़ी राज्य) के संघर्ष के लिए प्रतिबद्ध थे। वह उत्तराखंड की स्थापना के लिए खड़े होने वाले कट्टरपंथियों में से एक थे और उन्होंने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सफलतापूर्वक काम किया। वह नवगठित उत्तराखंड राज्य में वर्ष 2002 में पहली विधानसभा में वह उत्तराखंड विधानसभा के द्वाराहाट क्षेत्र से विधायक चुने गए। उन्होंने उत्तराखंड के विकास के लिए खुद को समर्पित किया। उन्होंने अपनी लड़ाई को लगातार उत्साह और संघर्ष के साथ जारी रखा। वह उत्तराखंड क्रांति दल के थिंक टैंक के रूप में जाने जाते थे। कहा जाता है कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद गैरसैण को राजधानी बनाया जाएगा यह दूरदर्शी सोच भी उन्हीं की थी उन्होंने ही सर्वप्रथम डॉ डी डी पन्त को गैरसैण का नाम सुझाया क्युकी यह स्थान उत्तराखंड के मध्य में है और कुमाऊं और गढ़वाल के बीच में है।
विपिन चन्द्र त्रिपाठी विपिन दा का एक भाषण जो कि उन्होंने भिक्यासैन में दिया था वह काफी प्रसिद्ध हुआ और उनकी बाते, बोलने की कला और दूरदर्शी सोच के सभी कायल थे।
30 अगस्त 2004 को 59 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उस समय, वह उत्तराखंड क्रांति दल के प्रदेश अध्यक्ष भी थे। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र पुष्पेश त्रिपाठी को द्वाराहाट विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुना गया। अभी पुष्पेश भी उत्तराखंड क्रांति दल को आगे ले जाने, जैसा राज्य उनके पिता ने एवम् अन्य राज्य आंदोलनकारियों ने देखा था उस स्वप्न को पूर्ण करने को वह संघर्षरत हैं और अपने पिता के दिखाए मार्ग पर चलने की कोशिश कर रहे हैं।