रिपोर्ट – विनय तिवारी
हाइड्रोपोनिक विधि द्वारा 5- 6 महिने से हरी सब्जियो इत्यादि का उत्पादन दीपा बिष्ट प्यूड़ा मुक्तेश्वर द्वारा किया जा रहा है जो बिना मिट्टी के पानी में ही हरी सब्जियों का उत्पादन काफी मात्रा में किया जा रहा है।
इस तकनीक को स्वॉयललेस कल्टीवेशन कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने इसे ‘हाइड्रोपोनिक्स’ यानी जलकृषि नाम दिया है। इसमें मिट्टी का प्रयोग नहीं होता है, इसे केवल पानी में या लकड़ी का बुरादा, बालू अथवा कंकड़ों को पानी में डाली जाता है। उसके बाद अन्य इंतजाम करने होते हैं। सामान्यतया पेड़-पौधे अपने आवश्यक पोषक तत्व जमीन से लेते हैं, लेकिन हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में पौधों के लिये आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराने के लिये पौधों में एक विशेष प्रकार का घोल डाला जाता है।
हाइड्रोपोनिक्स के लाभ-
1- इस तकनीक से बेहद कम खर्च में पौधे और फसलें उगाई जा सकती हैं। एक अनुमान के अनुसार 5 से 8 इंच ऊँचाई वाले पौधे के लिये प्रति वर्ष एक रुपए से भी कम खर्च आता है।
इस तकनीक में पौधों को आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिये आवश्यक खनिजों के घोल की कुछ बूँदें ही महीने में केवल एक-दो बार डालने की जरूरत होती है। इसलिये इसकी मदद से आप कहीं भी पौधे उगा सकते हैं।
2- परंपरागत बागवानी की अपेक्षा हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से बागवानी करने पर पानी का 20 प्रतिशत भाग ही पर्याप्त होता है।
3- यदि हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया जाता है तो कई तरह की साक-सब्जियां बड़े पैमाने पर अपने घरों और बड़ी-बड़ी इमारतों में ही उगाई जा सकेंगी। इससे न केवल खाने-पीने के सामान की कीमत कम होगी, बल्कि परिवहन का खर्चा भी कम हो जाएगा।
4- चूँकि इस विधि से पैदा किए गए पौधों और फसलों का मिट्टी और जमीन से कोई संबंध नहीं होता, इसलिये इनमें बीमारियाँ कम होती हैं और इसीलिये इनके उत्पादन में कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता है।
ऐसे ही हमारे राज्य में बहुत सी महिलाएँ है जो स्वरोजगार को बढ़ावा देने का कार्य कर रहीं है। पहाड़ एक्स्प्रेस सरकार से उम्मीद करता है कि वह इस तरह के कार्य करने वाले लोगों को प्रोत्साहित करेगी ताकि हमारी संस्कृति, कृषि व हमारी चीजों को और बढावा मिलता रहे। कोरोना के इस दौर में सभी लोग स्वरोजगार को अपना रहे है और पहाड़ में स्वरोजगार युवाओं के लिए एक नए उम्मीद की किरण बन कर सामने आ सकता है।