आज ही के दिन पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की माँग कर रहें निहत्थे आंदोलनकारियों पर पुलिस द्वारा गोली चला कर आंदोलन को दबाने का प्रयास किया गया था और साथ ही इसमें कई आंदोलनकारियों कि मत्यू भी हुई, सभी शहीद आंदोलनकारियों को शत शत नमन, जानें खटीमा गोलीकांड और मसूरी गोलीकांड की गाथा

आज ही के दिन पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की माँग कर रहें निहत्थे आंदोलनकारियों पर पुलिस द्वारा गोली चला कर आंदोलन को दबाने का प्रयास किया गया था और साथ ही इसमें कई आंदोलनकारियों कि मत्यू भी हुई, सभी शहीद आंदोलनकारियों को पहाड़ एक्सप्रेस नमन करता है 🙏

1 सितंबर खटीमा गोलीकांड –
हमेशा की तरह एक सामान्य सुबह की तरह ही खटीमा की 1 सितम्बर, 1994 की सुबह भी शुरू हुई। लोगों ने अपनी दुकानें खोली थी, ठेले वालों ने ठेले लगाए थे, सब अपने अपने काम में लगे थे और बाजार सुबह दस बजे तक पूरा खुल चुका था। तहसील के बाहर वकील अपने-अपने टेबल लगा कर बैठ चुके थे।
आज के दिन खटीमा में सरकार की गुंडागर्दी और तानाशाही पूर्ण रवैए के विरोध में प्रदर्शन किया जाना था तो सुबह 8 बजे से ही रामलीला मैदान में लोगों ने जुटना शुरू कर दिया था। जैसे जैसे समय बीतता गया भीड़ बढ़ते गई और 10,11 बजे तक दस हजार लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी।
जिसमें युवा, पुरुष, महिलायें और पूर्व सैनिक शामिल थे। महिलाओं ने अपनी कमर में परम्परा के अनुसार दरांती बांध रखी थी तो पूर्व सैनिकों में कुछ के पास उनके लाइसेंस वाले हथियार थे। रामलीला मैदान से सरकार का विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ।
भीड़ ने तेज आवाज में सरकार विरोधी नारे लगाते हुए सितारगंज रोड से होते हुए जुलूस को आगे तहसील की ओर बढ़ाया। यह जुलूस दो बार थाने के सामने से होकर गुजरा था। पहली बार में जब जुलूस थाने के आगे से निकला तो युवाओं ने खूब जोर-शोर से नारेबाजी की।
जुलूस का नेतृत्व कर रहे पूर्व सैनिकों को जब लगा कि युवा उत्तेजित हो रहे हैं तो उन्होंने भीड़ को संभाल लिया था। इस तरह आन्दोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा था।
दूसरी बार जब जुलूस के आगे के लोग तहसील के पास पहुंच गये थे और पीछे के लोग थाने के सामने थे, तभी थाने की ओर से पथराव किया गया और कुछ ही देर में आस-पास के घरों से भी पथराव शुरू हो गया।
यह देखते ही पुलिस ने बिना किसी चेतावनी के लोगों पर गोलियां चलाना शुरू कर दिया। अगले डेढ़ घंटे तक पुलिस रुक-रूककर गोली चलाती रही। अचानक हुई इस गोलीबारी से भीड़ में भगदड़ मच गयी। जिसमें सात लोगों की मृत्यु हो गयी और सैकड़ों घायल हो गये।
पुलिस की गोलियों से कुछ लोगों की मृत्यु हो गयी तो पुलिस ने चार लाशों को उठाकर थाने के पीछे एलआईयू कार्यालय की एक कोठरी में छुपा दिया। देर रात के अंधेरे में चारों शवों को शारदा नदी में फेंक दिया। घटना स्थल से बराबद अन्य चार शवों के आधार पर पुलिस ने अगले कई सालों तक मारे गये लोगों की संख्या केवल चार बताई। पुलिस ने लगभग साठ राउंड गोली चलाई। पुलिसवालों ने तहसील में जाकर वकीलों के टेबल जला दिये और वहां जमकर तोड़फोड़ मचा दी।
पुलिस ने अपने काम को सही ठहराने के लिए तर्क दिया कि पहले आन्दोलनकारियों की ओर से गोली चलाने के कारण उन्हें जवाबी कारवाई करनी पड़ी। अपने तर्क को मजबूती देने के लिए पुलिस ने महिलाओं द्वारा कमर में दरांती का खूँसा जाना और पूर्व सैनिकों का लाइसेंस वाली बंदूक का अपने पास रखे होने का बहाना दिया। आज भी महिलाओं की दरांती और पूर्व सैनिकों की लाइसेंस वाली बंदूक को खटीमा गोलीकांड में गोली चलाने के कारण के रूप में पुलिस द्वारा गिनाया जाता है। परन्तु खटीमा गोलीकांड में किसी भी पुलिस वाले के शरीर में न ही गोली के निशान मिले ना ही दरांती के।

उत्तराखंड के इतिहास में आन्दोलन के दमन की यह घटना है। इस घटना में शहीद आन्दोलनकारियों के नाम हैं –
1. शहीद प्रताप सिंह
2. शहीद सलीम अहमद
3. शहीद भगवान सिंह सिरौला
4. शड़ीद धर्मानन्द भट्ट
5. शहीद गोपीचंद
6. शहीद परमजीत सिंह
7. शहीद रामपाल

2 सितम्बर मसूरी गोलीकांड –
दो सितंबर की सुबह मौन जुलूस निकाल रहे राज्य आंदोलनकारियों पर पुलिस और पीएसी ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर छह लोगों को मौत के घाट उतार दिया। फायरिंग के कारण शांत रहने वाली पहाड़ों की रानी मसूरी के वातावरण में बारूदी गंध फैल गई। आज भी उस हृदयविदारक घटना को याद करने वालों की रूह कांप जाती है।
पृथक राज्य की मांग पर चल रहे शांतिपूर्ण आंदोलन को कुचलने के इरादे से तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने पुलिस और पीएसी का सहारा लिया। माल रोड स्थित झूलाघर में क्रमिक अनशन पर बैठे पांच आंदोलनकारियों को एक सितंबर 1994 की रात पुलिस ने उठा लिया था। दो सितंबर की सुबह राज्य आंदोलनकारी खटीमा गोलीकांड और अनशनकारियों को उठाने के विरोध में मौन जुलूस निकाल रहे थे। झूलाघर पहुंचते ही पुुलिस और पीएसी ने निहत्थे और निरीह आंदोलनकारियों पर ताबड़तोड़ गोलियां चला दी।

मसूरी कांड में शहीद हुए आंदोलनकारियों के नाम –
1. शहीद हंसा धनाई
2. शहीद बेलमती चौहान
3. शहीद राय सिंह बंगारी
4. धनपत सिंह
5. मदनमोहन ममगाईं
6. युवा बलवीर नेगी
पुलिस के सीओ उमाकांत त्रिपाठी भी पुलिस की गोलियों के शिकार हो गए। पुलिस की गोली से घायल पुलिस उपाधीक्षक उमाकांत त्रिपाठी ने सेंट मेरी अस्पताल में दम तोड़ दिया। पुलिस और पीएसी का कहर यहीं नहीं थमा। इसके बाद कर्फ्यू के दौरान आंदोलनकारियों का उत्पीड़न किया गया। 2 सितंबर से चले कर्फ्यू के दौरान करीब एक पखवाड़े तक लोगों को जरूरी सामानों के लिए भी तरसना पड़ा था।