चारधाम राजमार्ग परियोजना न केवल उत्तराखंड अपितु समस्त देशवासियों के लिए मायने रखती है ।जहां एक ओर 345 किमी लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा से घिरे उत्तराखंड के लिए इसका सामरिक महत्व है ,तो दूसरी ओर इस राजमार्ग के जरिये रिवर्स माइग्रेशन की राह खुलने के भी पुरे पुरे आसार है ।जो की प्रदेश की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने मे मददगार साबित होगी ।
भारतीय मृदा और जल संरक्षण संस्थान (देहरादून) के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. डीवी सिंह का कहना है कि चारधाम परियोजना का निर्माण जितनी जल्द पूरा होगा, रिवर्स पलायन भी उतनी ही जल्द शुरू होगा। इसके माध्यम से बारहों महीने चारधाम यात्रा संभव है और इससे पर्यटन के असीमित अवसर भी पैदा होंगे।
डॉ. सिंह ने कहा कि पलायन के चलते खेत बंजर हो गए हैं और इससे तमाम प्राकृतिक जलस्रोत भी सूख चुके हैं। वह इसलिए कि हल चलाने के बाद जो खेत अधिक मात्रा में वर्षाजल सोखते थे, उनमें अब पानी टिकता ही नहीं। ऐसे में स्रोत भी कहां से रिचार्ज होंगे।
वहीं, लेफ्टिनेंट जनरल एमसी भंडारी (रिटायर) का कहना है कि चीन की तैयारियों को देखते हुए हमें अपनी सीमांत सड़कें बेहतर बनानी होंगी। तभी भारी से भारी रक्षा संसाधनों को कम समय पर सीमा पर पहुंचाया जा सकता है। इसलिए, चारधाम परियोजना में सरकार को किसी तरह का समझौता नहीं करना चाहिए। ब्रिगेडियर सर्वेश डंगवाल (रिटायर) भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। उनका कहना है कि हमें वर्ष 1962 की जंग से सीख लेनी चाहिए। हम सीमा पर हथियारों को जल्द नहीं पहुंचा सके और चीन झटपट तोपों को लेकर हमारे सिर पर खड़ा हो गया।
हवाई मार्ग से अत्याधिक सामान नहीं ढोया जा सकता। तोप, आर्मी एम्युनिशन, ईंधन, रसद के लिए सड़क मार्ग सबसे उपयुक्त रहता है। चारधाम राजमार्ग परियोजना से हमारी क्षमता बढ़ जाएगी। शायद इसीलिए चीन की बौखलाहट भी दिख रही है। सरकार को चाहिए वर्ष 2016 में शुरू हुई चारधाम परियोजना का काम पूरा करने में अधिक विलंब न किया जाए।