कभी देखा है ‘आमा’ के चेहरे की झुर्रियों का भूगोल…,
या पढ़ा है कभी दुलार बरसाती खुरदुरी हथेलियों का इतिहास..;
यकीन मानो, आमा खुश है आजकल, कहती है “लोकडैन हुआ है कुछ, करूना की छुट्टी हुई है।”
वो मुस्कुराती है आजकल., सेल-पूरी बनाती है रोज..!
शहरों से बेटे लौट आये हैं घर बिमारी से बचने.. बहू- बच्चों को लेकर..;
बच्चे खुश हैं गांव आकर..,
यहाँ नहीं है प्ले-ग्राउंड, मैक’डी का बर्गर..,
फिर भी वो खुश हैं… पहाड़, नौले, खेत, ओखल देखकर…!
अम्मा के सेल-पूरी ने लौट आए बेटों को बचपन याद दिलाया है..
‘जेठ’ तक रुकेंगे सब घर पर, यही सोच के खुश है आमा..,
आमा को अपनी उमर तो शायद नहीं पता, पर त्योहार सारे याद है..,
कब होगा पुसुड़िया संक्रांत, घी-त्यार, नेपाल का ‘ दसैं, बिसपति..,
कहती है सरकार ने कोई नया त्यौहार है बनाया है शायद…
‘लोक डैन’..
‘करूना’ आता है इस बखत, तो गाँव आते हैं सब..!!
अक्सर आमा चुपके से दुआ देती है ‘लोक डैन’ को..
“जी रये लोक डैन, बरस-दो बरस में आते रै..;
नाती-पोतों को दुलारे बरस बीत जाते हैं..!!”
#गाँव_में_लॉक_डाउन
#अम्मा
संदीप पाण्डेय “सैमी”