हां ! हिंदी हूं मैं
हां वही हिंदी, जिसको तुम बचपन में बोला करते थे,
थाना – थाना(खाना- खाना) कहकर सबको प्यारे लगते थे
हां मैं वहीं हिंदी हूं
जिसको बचपन से बोलकर तुम इतने बड़े हुए,
पर.. क्या तुम मानव ने
सच में मुझे राष्ट्रभाषा माना
शायद नहीं?
जैसे मानव तुम युवा हुए
हिंदी का दामन छोड़, अंग्रेज़ी से नाता जोड़ लिए
शायद तुम भूल गए उस आजादी को,
जिसमें हमारे देशभक्तों ने अपना खून बहाकर
हमारे देश को आज़ाद कराया
और मानव तुम आज
अंग्रेजी बोलने पर गर्व महसूस करते हो,
और हिंदी बोलने पर शर्मसार हो जाते हो
14 सितंबर को तुम हिंदी बोलते हो
और दिन भाषण तुम अंग्रेज़ी में देते हो,
हिन्दुस्तान में तुम रहते हो, पर अंग्रेज़ी से नाता जोड़ते हो,
वाह! रे मानव तेरी भी क्या तारीफ करू
जब तू ही नेता, उद्योगपति बनता है,
तू भी क्या फराटेदार अंग्रेजी बोलता है,
शायद तू भी भूल जाता है कि तू भी एक हिंदुस्तानी है
14 सितंबर को ही क्यों?
हिंदी का ध्यान आता तुम्हे
मानव हिंदी का तुम स्वयं अपमान करते हो
वर्षों पहले जिसके गुलाम थे ,
उसी की ही भाषा को अपनाते हो,
ओ! अंग्रेजी भाषा के आवेश में खोए मानव
अब तो जाग जाओ, मिलकर सब प्रयास करो,
अपनी मातृ भाषा को दिलाओ एक अलग पहचान,
ताकि हर एक इंसान गर्व से कहे, हिंदी हैं हम, हिंदी हैं हम
हां! हिंदी हू मैं और यही है मेरी कहानी,
जो है हर एक नागरिक की जबानी।।