‘जीना पडे़गा’ – कवियित्री किरन पन्त की स्वरचित कविता

कभी घात बनकर कभी आघात बनकर
संस्कार निकल रहे हैं अभिशाप बनकर
बेटियां जिंदा क्यों है यह सोच कर
तिलमिला रहे हैं भेड़िए बलात्कार बनकर।

रोक दो इनकी सांसे फंदे का नाप ले लो
सुन लो ओ बेबस लड़कीयों एक बात तुम जान लो
आएगा कोई बनके फरिश्ता आसमां से
ये बात अपने जेहन से अब जरा उतार लो।

गाड़ी का लाइसेंस छोड़ दो
बंदूक कमर में ठोस लो
बनना पड़े फूलन देवी तो बन जाओ
आंखें दिखाए वैयशी तो गोली से वही भून दो ।

जीना पड़ेगा खुलकर यह बात मेरी मान लो
कपड़ों के संग अब तुम शस्त्र भी टांग लो
उठाए कोई उंगली संस्कारों पर गर तेरे
सबसे पहले उसी की गर्दन को तुम काट दो।

किरन पांडे पंत (वर्तिका)