इन जलते हुए चिरागों के तले अब अंधेरा क्यों है,
मुस्कुराते हैं चेहरे पर मायूसियों का बसेरा क्यों है..
मत कर यूँ धोखा तू ख़ुद से, इस जमाने के कारण
जो जुल्म हुआ है तेरे साथ, तो फिर छिपाता क्यों है..
यहाँ हर एक कदम पर कई नफरतों का साया है,
इन मतलबी रिश्तों को फिर तू निभाता ही क्यूँ है..
यहाँ कोई काबिल नहीं तेरे दिल में हक़दार बनने का
और ये सब जानकर भी फिर तू इन्हें बसाता ही क्यों है..
दीपांशु गुरुरानी