“स्वप्न” – डॉ. ललित जोशी “योगी” की स्वरचित कविता

✍️स्वप्न

स्वप्न हैं ये!
परसों मेरी दहलीज से भीतर
बर्छे और भाले लेकर
आदिमानव आ रहे थे!
और आज!
मैं, बच्चों को,
जर्नलिज्म के एथिक्स
समझा रहा था।
इसी तरह-
एक दिन किसी भीषण जंगल में,
भीम चट्टान पर चढ़कर,
मोगली बन-जंगल गीत गा रहा था।
मैं,
हर दिन देखता हूँ!
एक नया सपना,
मुझे अब सपनों में ही
दिखने लगी है-
अजब-गजब दुनिया।

स्वप्न ही तो हैं!
जो मुझे कुछ नया दिखा रहे हैं
और
जीना सीखा रहे हैं।

डॉ.ललित चंद्र जोशी ‘योगी’