“इंतज़ार” – उभरते हुए युवा कवि सुनील कालाकोटी की स्वरचित कविता

इंतज़ार 

सुब्ह की ओस जब इन पत्तियों में चुपके से बैठ जाय
हौले हौले ये पत्तियां तब जगाने लगती है।
रात भर सरसराती हवाओ से परेशा बदलती रही थी करवटें
इक सुब्ह की नींद थी वो भी इस सुनहरी ओस ने ले ली।
ओस भी शर्माती हुवी फिसलती है इन पत्तियों से
दिन चढ़ आया है उसे भी अब धुँवा होना है।
फिर किसी रात में जब सर्द हवाएं चलेंगी
सरसराहट में ये पत्तियां जब करवटें बदलेंगी
ये ओस सुब्ह का इंतज़ार करती
इन पत्तियों के सोने तलक जगी रहेंगी।
इंतज़ार में दोनो है
ये पत्तियां भी
ये ओस भी।

सुनील कालाकोटी