ऐसा होता है “आदमी” – युवा कवि दीप प्रकाश माही कि स्वरचित कविता

तू खुद तकलीफ़ सह लेता है घर परिवार की जरूरतों के लिए,
तू अपना सब त्याग देता है बच्चों की खुशियों के लिए
क्या तुझे नहीं अधिकार मौज़ मस्ती में रहने का
क्या तुझे नहीं अरमान हंसने गाने का

क्यों इतना हठी कहती है दुनियां तुझे
क्यों अपनों को सुख बांटकर तू
दुखों का भोगी बन जाता है।

क्यों तू अपने सपनों का यूं अंत कर देता है
क्या सच में यह तुझे शोभा देता है?

दीप प्रकाश माही