“पलायन” – उत्तराखंड से पलायन पर दिव्या जोशी का लेख….

रिपोर्ट – दिव्या जोशी

हमारे युवा आधुनिक पीढ़ी में वास करते हैं, हर किसी को आज के दौर में सफलता की चाह है। हमारे शहर जितने आधुनिक है, उतने गांव अभी तक नहीं हो पाए हैं। इसी सफलता और आधुनिकता की चाह में लोग गांव छोड़कर शहरों की तरफ जा रहे हैं जिसको हम पलायन कहते हैं।

दिल्ली, मुंबई, पुणे यह सब आधुनिक शहर है और इन्हीं शहरों की तरफ पलायन काफी भारी मात्रा में हो रहा है। दिल्ली और महानगरों में जनसंख्या काफी भारी मात्रा में बढ़ चुकी है, जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंच रहा है और यह आने वाले समय में हालात बहुत बुरे कर देगा। आज दिल्ली भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के प्रदूषित शहरों में से एक है।

वहीं हम पहाड़ों की बात करें तो पहाड़ों में आज भी उतनी ही शांति है, पर अगर वही आधुनिक सेवाएं हम अपने छोटे शहरों में लाने की कोशिश करे तो ना ही पर्यावरण को हानि होगी, ना ही हमारे भूमंडल को हानी होगी और हमारा देश पूर्ण रूप से आधुनिक हो पाएगा। इसके लिए जरूरत है नई सोच की, हमारे सहयोग की सरकार के सहयोग की और बेहतर परिस्थितियां पूर्ण बदलाव के साथ हमारे सम्मुख होगी।

एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षों में 6338 ग्राम पंचायतों से कुल मिलाकर 3,83,726 लोग पलायन कर गए, जो अभी भी कभी-कभी गाँव में आते हैं। इनमें से 3946 ग्राम पंचायतों के 1,18,981 ऐसे लोग हैं जो पूरी तरह से रोजगार की तलाश में पलायन कर गए और फिर वापस लौट कर नहीं आए।

2011 की जनगणना के अनुसार सबसे कम आबादी वाले गांव पौड़ी में है जहां 50% लोग गांवों को छोड़ चुके है और दूसरे नंबर पर अल्मोड़ा है।

जिसका मुख्य कारण अच्छी शिक्षा ना मिल पाना, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का ने होना और बढ़ती बेरोज़गारी माना गया है। अधिकतर लोगों का कहना यही है कि रोजगार नहीं मिलेगा तो पलायन तो करेंगे ही।

इसी पर अल्मोड़ा के यश जो 13 वर्षों से दिल्ली में निवास कर रहे है कहते है की “जब तक अच्छी स्वास्थ सुविधाएं प्रदान नहीं कराई जाएंगी और रोजगार के अच्छे अवसर पहाड़ों में उत्पन्न नहीं कराए जाएंगे, तब तक पलायन को रोकना मुश्किल ही होगा।”

उसी जगह एक घर में बूढ़ी अम्मा कहती है कि घर सुने हो गए है, बच्चे सिर्फ पूजा या काम में घर आते है और वो अकेले घर का सारा काम करती है।

पलायन करना जितना रोजगार के लिए आवश्यक है, क्या उतना ही हमारे बूढ़े माता-पिता, दादा-दादी के लिए दर्दनाक नहीं जो अकेले अपने दिन काट रहे है।

अतः जब तक सही सहयोग नहीं होगा और हमारा युवा कोई कदम नहीं उठाएगा, सरकार सुविधाएं नहीं सुधरेगी, तब तक पलायन होता ही रहेगा।

जब सोच में बदलाव होगा ,
तभी समाज में बदलाव होगा,
घर को खोजें रात दिन,
घर से निकले पाव,
जब रोकोगे पलायन,
तभी होगा पूर्ण बदलाव।