भाग भुईया भाग, म्यार घर बै निशि जा,
राक्षसा मार खलै, मरि जलै,
त्यर ख्वर कै अखोड जस फोडि द्यूल,
निशि जा न त खूब मारी जलै।
तुलसी एकादशी हिन्दू मान्यता क दिन छु। य दिन माता तुलसी क ब्या भगवान विष्णु दगड होई बताई गो। पहाड मे महिलायै बृत ली बेर तुलसी माता क सोलह श्रंगार करनी व नयी कपडे, या धिगडे या लुकुडा पैरै बेर सजूनी।
य दिन साधक लोग या मैस आपण मन, आपण, भीतेर याआपण समाज बटिक, बुराई, कुवृति, कुरीति या राक्षस प्रवृति दूर करन क लिजि संकल्प बद्ध हुनेर भयी और काम करनेर भयी।
पहाडो मे पैलिकै बटी यो रिवाज छु कि एक सुप मे रंगोली बणै बेर माता तुलसी तथा भगवान विष्णु सुन्दर चित्र बणै दिनी। धूप, अक्षत, रोली, चंन्दन, पिठ्या, फूल, पत्ती, दीया, तेल बाती के साथ गंधाक्षत करनी व दीप, धूप जलूनी। सुप मे उल्टी तरफ विकृति या राक्षस का सुन्दर सा चित्र बनै दिनी। आब एक या द्वि बी या बीज या दाने अखोड या अखरोट लि बेर एक रिखू ढाक या गन्ने का डंडा या दंड लै लिण पणा। यो सब काम द्वादशी दिन भोर मे अन्यार पट या अंधेरे मे ही आपण मन, मंदिर, घर, मकान, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, अपने समाज से राक्षस रूपी प्रवृति को बाहर या भ्यार करन पडनेर भै।
अब दी बाती जलै बेर, राक्षस ख्वारम या सिर मे अखोड व रिखू, दंड लै पट पटाते हुए घर के हर कमरे, रसोई, मंदिर, प्रतिष्टान व समाज को साक्षी मान बेर अटाग याअलग जाग कै रिखू डंड लै अखोड लै राक्षस ख्वारम अखरोट फोडनक लीका या ब्यवहार करनी। सुप मे खीले, बतासे, खिलौने, मिठाई, फल, फूल, यो काम है पैली धरनी व भोग लगूनी। ऑखीर मे तुलसी माता व बिष्णु भगवानो की आरती करनी। शंख, घंन्टी ध्वनि साथ विदाई समारोह मनाते हुए भगवानो की विदाई बैकुन्ठ धाम हु करि जै।
तुलसी माता नमो नमः, श्री हरि विष्णू नमो नमः।