“रिश्ते ऑफलाइन बनाम ऑनलाइन” – मानसी जोशी का लेख

विषय – रिश्ते ऑफलाइन बनाम ऑनलाइन

प्राचीन समय में लोगों के लिए समाज,संस्कार, उत्तरदायित्व अत्यंत आवश्यक होते थे और इसी के अनुरूप है व्यक्ति व्यवहार करता था और उसके इसी व्यवहार के वजह से वह समाज में अपना स्थान बनाए रखता था। वर्ग, जाति, समुदाय आदि वर्गो में विभाजित होने के बावजूद भी उन लोगों में प्रेम भाव के गुण देखने को मिलते हैं। द्वेष की भावना भी मौजूद रहती हैं परन्तु उनमें फिर समझौते जैसे गुण भी देखने को मिलते थे। सभी लोगो में परिवार जैसा प्रेम, सदभाव भी देखने को मिलता था जो कि समाज के लिए एक मिसाल बनने का कार्य करता था। आपसी प्रेम के कारण व्यक्ति में खाना से लेकर रहने तक , सुख – दुःख आदि सभी में मेल मिलाप की भावना पाई जाती थी।

इसके विपरित वर्तमान युग को इंटरनेट का युग माना गया है, जिसमे सभी व्यक्ति मोबाइल, इंटरनेट, विडियो कॉल, चैटिंग आदि तक ही सीमित होकर अपने परिचितों से बातचीत करने तक सीमित हो गया है उसे समाज से कोई लेना देना नहीं है, क्योंकि अब वर्तमान समय में बिना इंटरनेट के किसी का जीवन नहीं चलता है। या यूं कहे की वर्तमान युग में व्यक्ति का जीवन मशीनी युग माना गया है चाहे वह रिश्ते को लेकर हो या काम को लेकर।

व्यक्तियों के लिए अपने परिवार का दायरा सिर्फ विडियो कॉल और चैटिंग तक सीमित हो गया है घर के खर्चे के लिए भी रूपए ऑनलाइन द्वारा भेजे जाने लगे हैं, वो यह जरूरी नहीं समझते हैं कि तीन या छ माह में जाकर अपने परिवार वालों से मिलकर उनका हाल चाल जान ले। अत्यावश्यक काम होने पर भी व्यक्ति अपने परिवार वालों से मिलने में दिलचस्पी ना दिखाकर ऑनलाइन वीडियो कॉलिंग में ज्यादा तव्वजों दिखाता है।ऑनलाइन इंटरनेट ने समाज में सभी रिश्ते, संस्कार आदि सभी उत्तरदायित्व को कम कर दिया है, जिससे व्यक्तियों में अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी भी बोझ की तरह लगने लगी है। ऑनलाइन रिश्ते निभाने के चक्कर में व्यक्ति अपने ही बने हुए रिश्तों को तोड़ने का काम भी बखूबी कर रहा है जिसका जिम्मेदार व्यक्ति स्वयं है, जो कि समाज के लिए घातक बनता जा रहा है।

अतः उपयुक्त बातों से स्पष्ट है कि प्राचीन युग के रिश्ते ही वर्तमान ऑनलाइन रिश्तों से उपयुक्त है, जिसमे प्रेम भाव व ईमानदारी देखने को मिलती है।।

रिश्तों को निभाए अगर दिल से
तो मजबूरी नहीं होती निभाने में
अटूट बंधनों में भी बंधकर नहीं
टूटता रिश्ता
किसी भी मजबूरी में।।

मानसी जोशी