“कारवां ले के चला अपनी डगर पे बादल” – उत्तराखण्ङ के जानें माने युवा कवि विवेक बादल बाजपूरी की कविता

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हमने बचपन से मुहब्बत का सफ़र बाँधा है ll

शाख पे घोंसला औऱ रेत पे घर बाँधा है ll

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जीने के जोश ने हर यास के पत्थर काटे ll

ख़्वाब बुन – बुन के बुलंदी का हुनर बाँधा है ll

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वो जो कल आके जलाने लगे महफ़िल में चराग़ ll

आ के बतलायें की उजालो को किधर बाँधा है ll

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जिनकी आँखों में है शौहरत की परी के सपने ll

उनकी चाहत ने बस अंधो का शहर बाँधा है ll

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राह तो कोई भी मंज़िल की ग़ुलामी में नहीं ll

उम्र की चाह ने दिलदार असर बाँधा है ll

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दिये – दिये से जुड़े तब हुआ उजाला अमर ll

इसी बुलंदी ने तो शम्स – ओ – कमर बाँधा है ll

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कारवां लेकर चला अपनी डगर पे बादल ll

ग़ज़ल बरसात की सावन का पहर बाँधा है ll

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——–©® विवेक ‘बादल’ बाज़पुरी