यमुना नदी
कल कल करके बहती हैं जो,
वहीं यमुना नदी हूं मै,
जो मानव और पशुओं की प्यास बुझाती थी,
हां! वहीं यमुना हूं मै,
पर….. समय का चक्र तो देखो,
जिस नदी को वो मां के समान पूजते थे,
उसी मानव ने मिलकर,
आज मुझे दूषित कर दिया।
स्वच्छ और निर्मल जल को मेरे मानव ने प्रदूषित कर दिया,
ना जाने……
मानवो की ऐसी भी क्या जरुरते बड़ी की ….
उसने मां जैसी पवित्र नदी को दूषित करने का सोच लिया?
पर मै तड़प रही हूं, उस दूषित जल में,
पर मानव को क्या पड़ी है मेरी,
क्योंकि वह तो मस्त है अपने दिखावे की दुनिया में,
काश! मानव समझ पाते मेरे अस्तित्व को,
तब शायद दूषित ना करते वो मुझको,
पर… कोई नहीं मानव जब मेरा अस्तित्व समाप्त हो जाएगा,
तब शायद तुम्हे मेरा महत्व समझ आयेगा,
बिन मेरे ना गंगा ,ना ब्रह्मपुत्र नदी का है अस्तित्व,
तो तुमने कैसे सोच लिया मानव की मेरे बिना तुम सुखी रह लोगे अपने इस जीवन में ?
अभी भी समय है मानव!
सम्भल जाओ वरना,
दुनिया का ऐसा भयानक रूप देखोगे कि..
खुद ना जान पाओगे कि क्या करें,
इसलिए सम्भल जाओ मानव अभी!
मत करो ऐसा पाप की पवित्र नदी को तुम दूषित करो,
सम्भल जाओ,मानव सम्भल जाओ अभी भी,
समय है,मत करो मत करो ,
पवित्र नदी को दूषित मत करो।।
मानसी जोशी