“कुछ बीज”
कुछ बीज इश्क़ के,
बो दिए नन्ही सी क्यारी में,
उम्मीद लिए खुशियों की,
सींचा दिल की गगरी से,
फूल खिला सुंदर मनभावन,
खिला बसंत फिर बरसा सावन,
कलियां विरह से देह त्यागी,
फूल भी बना कर्म भागी,
रिक्त हृदय,
मन भाव से खाली,
बिन देह जैसे रूह बेचारी,
अंत समय विरह अकेला,
ना शब्दों का ज्ञानी, ना भाव से खेला,
धैर्य की सीमा लांघ चला,
बनके रुह अभिलाषी,
विरह कर देह समर्पित,
फिर नई राह का राही बना,
जो इश्क़ हुआ था उस दरमियान
उस पहर अपने विराम को चला।
संगीता भाकुनी