मित्र की व्यथा और मेरी कलम
किसी से दूर होकर कोई मरता नहीं अब,
चाहे उसकी बेरुखी हर हद पार कर ले;
बस छोड़ देता है जीना उस अंदाज से
जब चर्चे किया करता था अपने महबूब के,
जिसको देख कर जैसे उसे,
हर मंजर कम ही लगता था
छोड़ देता है दोहराना,
उन बातों को जो अब तकलीफ देती है।
जो ख्यालों में डूबा रहता था किसी के,
अब सुहाने मौसम में भी ख्यालों से बेखबर रहता है,
बस तस्वीर देखता है हर सुबह उसी की,
खुद को याद करने से पहले ।
हर नज़ारे उसे दर्द देते लगते हैं,
और सारे मंजर जैसे गम बांटते हों।
मांगा करता था जो मन्नतें उसके साथ रहने की,
अब उसकी एक झलक पाने की भी
वो दुआ हर रोज करता है।
बस याद करता रहता है उसे हर पल हर लम्हा,
ना जीते हुए भी वो जीता है,
जिंदा नहीं है वो
फिर भी वो मरता नहीं है।
श्याम भट्ट