“हार ना मानूँगा” – युवा कवि मोटिवेशनल स्पीकर मनोज भट्ट की स्वरचित कविता

आज के इस चुनौती भरे समय मैं, जहा एक ओर बेहतर जीवन शैली और सफलता पाना सभी का लक्ष्य बन गया है, इसी समय ये सब पाना भी काफी मुश्किल बनता जा रहा है। जितना सुख सुविधाए हम पा रहे है उतने ही कम क़ाबिल हम हो रहे है, डिस्ट्रिक्सन, फेलियर, डिमोटिवेशन, सब हमें पीछे धकेल रहे हैं। इस माहौल मैं खुद को मोटिवेट रखना बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है। पेश है कुछ पंक्तियाँ
मोटिवेशनल स्पीकर और लाईफ कोच MANOJ BHATT की एक कविता, “हार ना मानूँगा”

मैंने डरों को पीना सीखा है,
मैंने गमों को भुलाना सीखा है।
मैंने सीखा है अंधेरों में चलना
और खामोशी से आगे बढ़ना।
मैंने जाना है हर दर्द को,

और मैंने ठाना है
कि रुकूंगा नहीं,
और न ही हार मानूंगा.
जब जब गिरूंगा, गिरकर उठूंगा हर बार,

गिरकर उठने की आदत है मुझेको
चाहे तुम गिराओ बार बार ।।

जिस तरह के शब्द आप खुद से कहते है, वैसे ही आप बन जाते है इसलिए जो हमारे दिमाग के भीतर जा रहा है और जो भी हमारे दिमाग मैं चल रहा है उसके प्रति सचेत होना बहुत जरूरी है। 

मनोज भट्ट