“आया ऋतुराज बसंत सुहावन”
भरता प्रकृति में नव श्वास
नव जीवन औ नव स्पंदन
देख सखी आया बसंत सुहावन
ऋतुराज सभी का मनभावन।
करता मंगल का उद्बोधन
मृग दल विचर रहा गिरी कानन
होता परिलक्षित क्षण-क्षण परिवर्तन
आया ऋतुराज बसंत मनभावन।
है आज धरा का महका यौवन
जीवन करता मंगल नर्तन
खग कुल सब करते हैं गुंजन
मलय बिखेरता चहुं ओर पवन।
खेत-खेत औ क्यारी-क्यारी
फूल उठी है सरसों प्यारी
पीत वर्ण में देखो कैसे
रंग उठी है धरती सारी।
अलि मकरंद चूम रहा
डाल डाल पर घूम रहा
गुन गुन स्वर में झूम रहा
कंटक में सुरभि ढूंढ रहा।
भरता रंग जीवन में नूतन
खग वृंद चहक रहा गिरी कानन
सज्जित हुआ आज यूं वसुधा तन
इन्द्रधनु सा ज्यूं रंगा गगन।
देख धरा का सज्जित उपवन
झूम उठा चहुं ओर जीवन
प्रात: मधुर कोकिल का गुंजन
घोल रहा रस जीवन में नूतन।
फूल उठे हैं सब वन उपवन
डाल डाल पर महका जीवन
बहता मंद सुरभित पवन अति पावन
आया ऋतुराज बसंत सुहावन।
कवीन्द्र पन्त (एडवोकेट)