“नारी के रूप अनेक” – महिला दिवस पर गुंजन जोशी की स्वरचित कविता

तेज है वो , ज्ञान है वो,हर फिक्र से अंजान है वो
बल है वो बुद्धि भी,हर पाप की जो शुद्धि भी।।

काल-कपाल पर विजय तिलक सी,
मधु से सिंचित ,शक्ति कमाल वो,
सुरभित बनमाल वो, जीवन की ताल भी वो
चौखट का सम्मान भी ,हर घर कि जो शान भी।।

स्नेह, प्यार और त्याग की,इकलौती पहचान है वो ,
सीमा से हिमालय तक,खेलो के मैदानों तक,
आज भय से निडर हो, कभी बन दुर्गा-काली वो,
कर्त्तव्य पथ पर अविचल जो, पुरुष संग प्रकृति है वो।।

यही इंदिरा यही सरोजनी,यही टेरेसा,
लक्ष्मी बाई अदम्य वो,
कभी बेदी जैसी बन कड़क,
कभी लता मंगेशकर सी सुरम्य वो,
वो भविष्य स्वर्णिम युग की, एक आशा की चिंगारी है,
हर अड़चन तक हारी जिससे, हर हर्फ में वो न्यारी है,
वो बनी यूँ युग निर्माता, उसी से सृष्टि सारी है,

ऐसी प्रतापी एक नारी है,,
सिर्फ एक नारी है।।

गुंजन जोशी