राष्ट्रीय ऐपण कार्यशाला का हुआ दृश्यकला संकाय में उद्घाटन

हमारी लोक विरासत, हमारी अमूल्य धरोहर विषयक राष्ट्रीय ऐपन कार्यशाला का सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के दृश्यकला संकाय और चित्रकला विभाग में उद्घाटन हुआ। उद्घाटन अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर देव सिंह पोखरिया, कला संकायाध्यक्ष और कार्यक्रम की अध्यक्ष प्रोफेसर पुष्पा अवस्थी, प्रदर्शनी के समन्वयक एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ चंद्र सिंह चौहान और प्रदर्शनी की संयोजक और दृश्य कला संकाय की संयोजक प्रोफेसर सोनू द्विवेदी ने सरस्वती चित्र पर पुष्पार्पण कर उद्घाटन किया।

दृश्य कला संकाय के डॉ सोनू द्विवेदी ने प्रदर्शनी से संबंधित विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कहा कि लोक से जुड़ी हुई चित्रों को इसके माध्यम से प्रदर्शन किया जा रहा है। संस्कृति विभाग से कई योजनाएं लोककलाओं को बढ़ाने के लिए के लिए लाभ दायक साबित हो रही हैं। उन्होंने कहा कि लोक कलाओं का भारतीय संस्कृति के लिए योगदान बहुत अधिक है। ऐसे में हमें युवा कलाकारों को इनकी जानकारी देनी होगी। उन्होंने कहा कि युवा कलाकार लोक में फैली लोककलाओं को जानें। अल्पनाओं के माध्यम से लोक संस्कृति से जुड़ें।

इस अवसर पर कार्यक्रम के समन्वयक और क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी एवं क्षेत्रीय प्रभारी, लोककला संस्थान, अल्मोड़ा के डॉ चंद्र सिंह चौहान ने कहा कि संस्कृति विभाग आपके हुनर की सराहना क़रती है। संस्कृति विभाग लोककलाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि पंडित गोविंद बल्लभ पंत लोककला संस्थान और दृश्य कला संकाय के संयुक्त तत्त्वावधान में लोक कला विधा के संरक्षण के लिए काम किया जा रहा है। इस प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पर आए कलाकारों को पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। उन्होंने कहा की संस्कृति विभाग द्वारा लोक कलाकारों को 15 हजार रुपये की वार्षिक छात्रवृति दी जा रही है। उन्होंने आगे कहा कि कला विधा किसी से छुपी नहीं है। कला का अपना विशेष महत्त्व है। ऐपण कला के संरक्षण के लिए हमारा विभाग कार्य कर रहा है। विभाग, लोक कला को बढ़ावा देने के लिए काम किया जा रहा है। आगे कहा कि कला प्राचीन समय से चली आ रही है। लेकिन अब तकनीक में बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि कला को समझें। स्वतंत्र रूप से काम कर आप अपनी क्षमता को बढ़ाएं।


मुख्य अतिथि रूप में प्रोफेसर देव सिंह पोखरिया ने कहा कि विरासत हमारी पहचान है। हमारी धरोहरों को कला के माध्यम से बचाने के लिए कार्य करना होगा। उन्होंने कहा कि कला और साहित्य, दोनों में आत्मानुभूति प्रवणता होती है। कला में हमारे जीवन की यथार्थता प्रकट होती है। उन्होंने ललित कला और उपयोगी कलाओं की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आप कला के विभिन्न क्षेत्रों में अपना भविष्य बना सकते हैं। सत्य, शिव और सुंदर की स्थापना करना ही कला का उद्देश्य है। कला जीवन के लिए है और
कलाओं का कोई अंत नहीं है। कला ही कलम और कूची की सहायता से इस समाज के सत्य को उद्घाटित करता है। कला हमारे हृदय को स्पंदित क़रती है। ठीक ऐसे ही साहित्य भी अपने शब्दों के माध्यम से हृदय के उद्गार को व्यक्त करता है। कला को बचाने ने महिलाओं का योगदान है। कला को बाजार से जोड़कर देखने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ऐपण के माध्यम से कुमाऊं को विश्व स्तरीय पहचान मिली है। ऐपण को हम आलेपन भी कहते हैं। लिप धातु से यह बना है। पूरे भारत में ये अलग अलग रूपों में है। चौक पूरना, अल्पना आदि कई नामों से इनको जाना जाता है। आज यह बाजार से जुड़ी है। अल्पना हमारी भारतीय संस्कृति से यह जुड़ी है। धर्म, आध्यात्म, प्रकृति, तीज-त्योहार, पर्वोत्सव आदि सभी अल्पना से जुड़ी है। भारत की भावात्मक एकता का प्रतीक है अल्पना। कुमाऊँ में पर्व, त्योहारों, संस्कारों में इनको निर्मित किया जाता है। लोक जीवन ने हमें लोककलाएं दी है।
उन्होंने प्रदर्शनी की संयोजक और दृश्यकला संकाय को इस विभाग को प्रथम पंक्ति में ले जाने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा कि बच्चों ने काफी मेहनत कर हमारी संस्कृति, धरोहरों को जीवित रखा है। इसकी सराहना उन्होंने की।

अध्यक्षता करते हुए कला संकाय की संकायाध्यक्ष प्रोफेसर पुष्पा अवस्थी ने कहा कि कला के संरक्षण के लिए आर्थिक सहयोग किया जाना आवश्यक है। साहित्य,कला और संगीत, मनुष्य को मनुष्यता प्रदान करने वाले कारक हैं, जिनके बिना मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। कला सर्वत्र व्याप्त है। यहां तक कि हमारे शास्त्रों में भी 64 कलाओं का उल्लेख है। हमारे दैनिक जीवन में कला का प्रदर्शन होता है। आगे कहा कि मनुष्य को बेहतर बनाने के लिए कला आवश्यक है। साथ ही उन्होंने कहा कि हर अच्छे-बुरे कार्यों के पीछे कला होती है। लोककला अल्पना के संबंध में उन्होंने कहा कि हर पर्व में दहलीज को लीपना, वसुंधरा बनाना, भित्ति आलेखन किया जाना, हमारे कुमाऊं की विशिष्ट परम्परा को अभिव्यक्त करता है। उन्होंने कहा कि प्रकृति और अपने आस-पास को देखकर उन सभी तत्वों को धरातल पर उकेरना ही आलेखन हैं, जिसमें हम कई प्रतीक चिन्हों को देखते हैं। डॉ अवस्थी ने कहा कि लोककलाओं का संरक्षण यहां की महिलाओं ने किया है। वह लोक की बात को हमारे सामने प्रस्तुत करती हैं। कलाकार को चाहिए कि वो अपने चित्रों के माध्यम से समाज की समस्याओं को प्रकट करें। इससे पूर्व दृश्यकला संकाय के छात्रों ने सरस्वती वंदना, स्वागत गीत, लोकगीत गाकर मंत्रमुग्ध किया।

इस अवसर पर डॉ ममता असवाल, डॉ ललित चंद्र जोशी, कौशल कुमार, रमेश मौर्य, चंदन आर्य, संतोष मेर, जीवन जोशी, पूरन मेहता, नाजिम अली आदि शिक्षक, छात्र और कर्मचारी शामिल हुए।