10 दिवसीय राष्ट्रीय चित्रकला प्रदर्शनी “अनुभूति – 03 एवं ऐपण कार्यशाला” के साथ इतिहास विभाग 2 दिवसीय अंतराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन एसएसजे परिसर अल्मोड़ा में हुआ

दृश्यकला संकाय एवं चित्रकला विभाग, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा (उत्तराखंड) के प्रदर्शनी कक्षा में चल रही चित्रकला प्रदर्शनी के साथ यहाँ पर आयोजित दो दिवसीय अर्न्तराष्ट्रीय सेमिनार-”भारतीय संस्कृति, भारतीय कला धरोहर, संरक्षण एवं सम्वर्द्धन के उद्घाटन सत्र में उपस्थित मुख्य अतिथि स्वामी नरसिम्हानन्द, विशिष्ट अतिथि प्रो. कुमार रत्न, सचिव ऐतिहासिक शोध संस्थान एवं भारतीय संस्कृति विभाग, कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे। प्रो. एन.एस. भंडारी कुलपति सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोडा प्रो. ओ.पी.एस.नेगी कुलपति उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय, प्रो. बी.डी.एस.नेगी, विभागाध्यक्ष इतिहास, प्रो . सी.एम. अग्रवाल, संयोजक अर्न्तराष्ट्रीय संगोष्ठी एवं पूर्व विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग, प्रो. नीरज तिवारी परिसर निदेशक, अल्मोड़ा परिसर सहित पधारे सभी गणमान्य अतिथियों और प्रतिभागियों ने सर्वप्रथम दृश्यकला संकाय के प्रदर्शनी कक्ष में “हमारी विरासत हमारी अमूल्य धरोहर” विषय के अर्न्तगत् बने चित्रों की दस दिवसीय राष्ट्रीय चित्रकला प्रदर्शनी का सूक्ष्म अवलोकन किया एवं मुख्य अतिथि स्वामी नरसिम्हानन्द ने प्रदर्शित भारतीय कला और धरोहर पर बने चित्रों की बारिकियों को प्रतिभागी कलाकारों से समझा और कलात्मक सृजन की सराहना की।

संगोष्ठी में उपस्थित समस्त अतिथियों ने प्रो. सोनू द्विवेदी ‘शिवानी’ के द्वारा लिखी गयी पुस्तक भारतीय सौन्दर्य (कुमाऊं की दृश्यकला के विशेष सन्दर्भ में) का विमोचन किया एवं बधाई दी। इस पुस्तक में भारतीय सौन्दर्य के विविध पक्ष यथा-रस, अलंकार, औचित्य आदि गूढ़ सिद्धान्तों की विस्तृत विवेचना कला के परिप्रेक्षय मे की गई है। मुख्य अतिथि प्रो. कुमार रतन जी ने पुस्तक की सराहना की और कहा कि चित्र हमारे जीवन का आत्मतत्व है। बिना सौन्दर्य और दर्शन के कोई भी विषय और विचार पूर्ण नहीं होता। प्रदर्शनी में प्रदर्शित चित्रों की सराहना करते हुए आपने कहा कि कला जीवन का आधारतत्व है। संस्कृति, इतिहास और धरोहर के अमूल्य रूप कला रूपों में ही सुरक्षित है जिनके प्रति समझ एवं संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।

प्रो. नीरज तिवारी परिसर निदेशक ने सभी अतिथियों का स्वागत किया।

प्रो. एन. एस. भंडारी कुलपति सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा ने कहा कि कुमाऊँ की संस्कृति एवं लोकजीवन की पहचान यहां के लोकचित्र ऐपण को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि स्थानीय लोककला रूपों के विस्तार से ही भारतीय संस्कृति व कला को समग्र पहचान मिल सकती है।

प्रो. ओ.पी.एस. नेगी, कुलपति उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय ने चित्रकला प्रदर्शनी की प्रशंसा कि और कहा कि संगोष्ठी विषय पर चित्रों का निमार्ण और प्रदर्शन बेहद प्रभावशाली संयोजन है जिससे इस विषय के विचारों को बल मिलेगा।

प्रो. वी.डी.एस नेगी, विभागाध्यक्ष इतिहास ने कहा कि ऐपणकला प्रागैतिहासिक मानव की कला है जो क्रमशः सुधरते हुए वर्तमान के इस कलात्मक रूप में हमारे सामने प्रकट हुआ है। ऐपण मानव के कमशः सभ्यता विकस एवं सौन्दर्य भावना का दृढ़ द्योतक है।

प्रो. सी.एम. अग्रवाल, संयोजक अन्तराष्ट्रीय संगोष्ठी एवं पूर्व विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग ने दृश्यकला संकाय और चित्रकला विभाग के सहयोग और विषयगत प्रदर्शनी संयोजन के लिए बहुत धन्यवाद दिया तथा प्रस्तुत चित्रों की सराहना की तथा विभाग एवं संकाय के सभी शिक्षकों कौशल कुमार, चन्दन आर्या, रमेश मौर्य, पवन यादव तथा सन्तोष सिंह मेर, पूरन सिंह, जीवन चन्द्र जोशी सहित चित्रकला एवं दृश्यकला के समस्त छात्र-छात्राओं को सक्रिय सहयोग हेतु धन्यवाद दिया।