एक नारी हूँ मैं ये सोचकर
खुद से आखिर डर जाना क्यों ?
मन बहलाने की खातिर बहाना क्यों ?
पलकों से ख्वाबों को छुपाना क्यों ?
घर की चारदीवारी में
बगीचे में क्यारी में
घर बार दुनियादारी में
सन्दूक में बक्से में अटैची में
या फिर चौका बर्तन तरकारी में
खुद को इतना उलझाना क्यों ?
परों को ही बोझ बनाना क्यों ?
एक माँ होकर अगर सृष्टि रच सकती है
तो एक नारी कुछ भी कर सकती है…
विपुल जोशी