सरकार ने इस बार स्वयं से 4 करोड़ कांवड़ यात्री देवभूमि उत्तराखंड आयेंगे ऐसा अनुमानित आंकड़ा जारी किया, लेकिन उन अनुमानित लोगों के लिए रहने- खाने की क्या व्यवस्था की गई, उनके लिए कितने अनुमानित शौचालयों का निर्माण किया गया इसके बारे में कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई,जबकि वैज्ञानिकों का मानना है खुले में शौच से महामारी तक फैल सकती है।
कर्जे में डूबे हमारे राज्य उत्तराखंड की सरकार के द्वारा कांवड़ यात्रियों पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा करने से कई बेहतर होता, सरकार पहाड़ की उन गर्भवती महिलाओं को हेलीकॉप्टर की सुविधा देती जो स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में प्रसव पीड़ा सहते हुए अपने प्राण त्याग देती हैं, लेकिन उन्हें कभी कोई यातायात/हेलीकॉप्टर की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती, अगर उन्हें यह सुविधा मिलती या ऐसी कोई योजना बनती तो मुझे जरूर लगता की धन का सदुपयोग हो रहा है।
आरटीआई में प्राप्त जानकारी के अनुसार देश के अधिकतर राज्यों में जहां मातृ-मृत्यु दर में कमी आ रही है, वहीं उत्तराखंड में इसमें बढ़ोत्तरी हो रही है। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, राज्य के सभी 13 जिलों में 2016-17 से 2020-21 तक मातृ मृत्यु दर में 122.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इसी अवधि में नवजात मृत्यु दर में 238 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
उत्तराखंड में प्रसव के दौरान हुई करीब 21 प्रतिशत मौतें उत्तराखंड की जनसंख्या में कुल 35 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले देहरादून और हरिद्वार जिले में हुई है। वर्ष 2016-17 से 2020-21 के बीच प्रसव के दौरान सबसे अधिक 230 महिलाओं की मौत हरिद्वार जिले में हुई है, जबकि पांच सालों में नैनीताल जिले में सबसे ज्यादा 910 नवजातों ने दम तोड़ा है। राज्य की जनसंख्या में करीब 20 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले चंपावत, पिथौरागढ़, पौड़ी गढ़वाल, उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग जिले में 28 फीसदी नवजातों की मौत हुई है।
आंकड़ों के अनुसार, इस अवधि में उत्तराखंड में कुल 798 महिलाओं की गर्भावस्था संबंधी जटिलताओं के कारण मौत हो गई। राज्य में 2016-17 में 84 महिलाओं की मौत गर्भावस्था संबंधी जटिलताओं के कारण हुई और यह संख्या 2020-21 में बढ़कर 187 हो गई। बता दें कि जन्म के 28 दिन के भीतर शिशु की मृत्यु को नवजात मृत्यु में गिना जाता है।
राज्य में 2016-2017 में 228 नवजात की मौत हुई थी और 2020-21 में यह संख्या बढ़कर 772 हो गई। आरटीआई के अनुसार, 2016 से 2021 तक राज्य में कुल 3,295 शिशुओं की मौत हुई, जिनमें से नैनीताल में सर्वाधिक 402 शिशुओं की मौत हुई। इसके अलावा इस अवधि में गर्भावस्था संबंधी जटिलताओं के कारण सर्वाधिक 230 महिलाओं की मौत हरिद्वार जिले में हुई।
सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये सरकारी आंकड़े हैं जो अक्सर घटाकर ही पेश किए जाते हैं, इस वक्त समस्या सबसे बड़ी ये है की देश में प्रदेश में हमारे आस-पास एक प्रजाति पैदा हुई है जो हर बात में कहती है “तब कहां थे”, तब की जो मुझे धुंधली- धुंधली सी याद है सात-आठ साल की उम्र रही होगी तब पहली बार उत्तराखंड राज्य बनाने के लिए हुए विरोध प्रदर्शन में पूरे सामर्थ्य के साथ नारे लगाए थे, और तभी से नफा-नुकसान की परवाह किए बिना जनहित के मुद्दों के लिए जनता का साथी हूं सरकार के लिए बागी हूं।
– विपुल जोशी