सुभाष चन्द्र बोस के जन्मदिवस पर सुमन बिष्ट की स्वरचित कविता “आजाद हिन्द का सिपाही – सुभाष चन्द्र बोस”

आजाद हिंद का एक और सपना कटक में जन्मा था

1897 की जनवरी 23 में भारत ने यह सौभाग्य पाया था।

गणितज्ञों ने राजयोग में जीवन सुख बोला था, लेकिन आजाद हिंद का यह सपना हिंदुस्तान की किस्मत बदलने निकला था।

नौकरशाही जिसे कभी ना भाई थी उसे अंग्रेजी हथकड़ियां भी कहां रोक पाई थी।

भेष बदल, आंख मिचोली खेल इसने अंग्रेजों की नींव हिलाई थी।

 

आज़ाद रहा आजाद जिया,

गुलाम हालवेट स्तंभ को तोड़

यह आजादी की राह पर पला बढ़ा।

 

भवन छोड़ा, शहर छोड़ा थोड़ा इसने देश था।

स्वराज की खातिर यह अपनों से भी हारा था।

 

अब जल चुकी एक लौह थी,

जो पश्चिम से पूर्व तक फैली थी

आजाद भारत की यह चिंगारी, अब मशाल बनकर निकली थी।

 

आजाद हिंद की फौजी थी, आजाद हिंद का ख़्वाब था

पग-पग पर चला झांसी रेजीमेंट इनके साथ था।

वर्मा तक तो विजय शीघ्र पाई थी।

पर पूरे हिंदुस्तान पर तिरंगा फहराना अभी बाकी था।

 

अफसोस हुआ….वह कहां गया?

एक सपना था जो क्या वाकई अब टूट गया?

 

आजादी सिखा गया, मगर स्वयं किस ओर गया?

एक रहस्य क्यों वह सदा के लिए पीछे छोड़ गया।

रहस्य था, रहस्य रहा, रहस्य ही सदा वह बना रहा

या अब भी आंखों में धूल झोंक वह आज़ादी की खातिर सदा मौन रहा।