“फौजी जिन्दगी” – राकेश उप्रेती की स्वरचित कविता

“फौजी जिन्दगी” 

अक्सर हर कोई कहता है फौजी से शादी कहां आसान होती है

वह तो खुद में ही तूफान होती है 

उससे बात करने के लिए हर पल मरना पड़ता है क्योंकि बॉर्डर पर नेट जो कम चलता है 

कभी-कभी तो बात भी नहीं हो पाती कुछ रातें बिना बात के गुजर जाती 

सोचती है वह काश मैं उनके साथ हो पाती

 फिर रोकर वह रात बिताती

 न जाने फिर भी सबके सामने 

वो मुस्कुराती

फौजी की याद में वो बेचैन है 

उसे अब कहां चैन है 

ये बर्थडे ये एनिवर्सरी उनकी 

यह तो यूं ही चले जाते हैं

 वो तो बस सोचते रह जाते हैं काश इस एनिवर्सरी तो वह घर आ पाते 

यह सब बाते उसे दुःखी कर जाते हैं

फौजी फौजन एक दूसरे की याद में बिखर जाते हैं

साथ रहना चाहिए सब को यह सब सिखाते हैं 

पर अक्सर वो अकेले रह जाते हैं प्यार के एक नई मिसाल कायम कर जाते हैं 

लेकिन हर समस्या का सामना करके दिखाते है 

ड्यूटी पर 7 महिने के बाद भी छुट्टी ना मिल पाती है

 अगले महीने तो घर जाऊंगा बस तो याद बन जाती है 

बॉर्डर में उसे घर की याद सताती है तुझे जल्दी घर आना है ये मां उसे बताती है

लेकिन ये सब अक्सर कहां पूरा हो पाता है

लोग कहते हैं अक्सर उसे सैलरी अच्छी मिल जाती है

पर ये सब मुश्किलें उन लोगों को कहां पता चल पाती है

बेटे का फर्स्ट बर्थडे आने वाला है सोचकर वह खुश होते हैं

फिर छुट्टी में मिलने वाला लेटर पढ़कर वो रोते है 

घर फोन करके फिर वह बताते अगले महीने पक्का घर आऊंगा यह झूठा दिलासा वो दिलाते है 

पर क्या करें साहब मजबूर है जो अपनों से दूर रहना क्या होता है यह दर्द भी फौजी सहन करके दिखाता है फिर भी लोगों के सामने वो मुस्कुराते नजर आते है !!

  💫राकेश उप्रेती ✍️