भिक्यासैन के करन रेखाड़ी ने पंच प्रण पर लिखी अद्भुत कविता….

 

पंच प्रण

मां भारती की देख धरा मैं यूं द्रवित हो जाता हूं।

वीर -वीरांगनाओं के वतन के विरासत से गर्वांवित हो जाता हूं।।

देख मेरे धरा के विरासत के कण -कण में क्या क्या है।

आओ सबको बतलाता हूं अमृतकाल के पंच प्रण मे क्या क्या है।।

इस बेमिसाल विरासत का प्रमाण एक तरफ।

विजयी विशाल विकसित भारत का निर्माण एक तरफ।।

एकता एकजूटता का रामबाण एक तरफ।

नागरिक कर्त्तव्य के निर्वहन का परिमाण एक तरफ।।

गुलामी की हर सोच से मुक्ति का अब स्मरण करना है।

आओ अमृतकाल के अवसर पर हमे पंच प्रण करना है।।

उन्मादी गुलामी से आजादी, विकसित भारत विचारवादी के लिए।

गुलामी के बर्बादी के हर सोच से मुक्ति, एकता, नागरिक कर्त्तव्य के आदर्शवादी के लिए।।

विकसित भारत के निर्माण के युक्ति के लिए।

हमें प्रण करना है एकजुट होते शक्ति के लिए।।

नहीं बनानी बातें बीती सिर्फ़ आख्यान में।

प्रण लेना है विकसित भारत के निर्माण में।।

न रखनी है सोच मात्र भी गुलामी की, रहे सब स्वाभिमान मे।

गर्व से कहो ‘ मेरी विरासत महान ‘, उतर के आसमान में।।

देश हित में, काल अमृत में, नागरिक कर्त्तव्य के स्वर्णिम रथ में।

एकता रूपी अश्व जैसे एक मत मे, एक चाल एक पथ में।।

हमें प्रण पथ पर हर पल इस बात का स्मरण करना है।

अमृतकाल के पंच प्रण को पूरा करने का एक प्रण करना है।।

~ ­ करन रेखाड़ी