हरेला हम सबका त्योहार करे हम धरती का श्रृंगार
हरेला हम सबका त्योहार ।
करें हम धरती का श्रृंगार ।।
प्रश्न मानव से करता यक्ष ।
लगाए कितने अब तक वृक्ष ।।
वृक्ष मानव जीवन के अंग ।
बिखेरे भांति भांति के रंग ।।
नील कुसुमों के वारिद बीच ।
ढकें पंकज के पल्लव कीच ।।
इन्हीं से सजता मधुर वसंत ।
यही कहता आकाश अनंत ।।
धरा सहती हम सबका भार ।
हरेला हम सबका त्योहार ।।1
बजाती मधुर साज मंजीर ।
पके जब बागों में अंजीर ।।
भूमि को जकड़े रहती मूल ।
रत्न गुम्फित से लगते फूल ।।
वृक्ष हैं ईश्वर का वरदान ।
इन्हीं से जिंदा है इंसान ।।
नहीं सँभले तो होगी देर ।
रोग फिर हमको लेंगे घेर ।।
विश्व में होगा हाहाकार ।
आंचल तिवारी