हरेला पर्व के पावन अवसर पर शोधार्थी कल्पना उप्रेती की स्वरचित कविता

हरेला पर्व 

सोंधी सोंधी सी महकती यह मिट्टी 

हमें कुछ कहने आई है,

चारों ओर फैली यह हरियाली 

पतझड़ की निराशा मिटा लाई है, 

नीले अंबर के तले मदहोश बहती यह हवा, 

मानो अपने संग खुशियां लपेट उड़ आई है|

सावन की रिमझिम बरसाती यह बूंदे,

हरेला पर्व मनाने का संदेशा ले आई है,

महकती मिटटी का प्रतीक है हरेला पर्व,

 चारों ओर फैली हरियाली का आधार है हरेला पर्व

पुरखो की विरासत को संजोए हुए, 

बुजुर्गों के स्नेह वह आशीर्वाद को धारण किए हुए, 

हम सबके उल्लास व उमंग की नींव है हरेला पर्व। 

मात्र पर्व नहीं महापर्व है यह हरेला, 

“जी रए जागी रए” का आशीर्वाद है यह हरेला, 

खेत खलियानों की गुनगुनाहट है यह हरेला, 

प्रकृति की सुंदरता का प्रतीक है यह हरेला, 

अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए, 

“पर्यावरण संरक्षण” की सीख है यह हरेला।

  कल्पना उप्रेती 

     शोधार्थी