युवा साहित्यकार मनी नमन जी की स्वरचित कविता

हैवानियत उस दिन कितनी बड़ी थी,

आतंक बनकर मौत सामने ख़डी थी,

मौत ने पूछा सच बता तू कौन है?

क्या धर्म मज़हब है क्यों मौन है?

जल्दी बता वरना छीन लेंगे सुकून चैन,

तू हिन्दू है, यहूदी है, ईसाई है या जैन।

वो बोला मैं खुदा, ईशु ना ही भगवान से हुआ हूँ

मै पैदा महज़ एक इंसान से हुआ हूँ।

बेवजह मुझे मारकर क्या करोगे मेरे भाई? 

मेरे बाद मर जाएंगे बीबी बच्चे बूढी माई,

अभी पापा का ऑपरेशन है, बहिन की शादी है,

अभी ज़िन्दगी की ज़िम्मेदारी आधी है।

तभी आवाज़ आई, सुन सजनी के बलमा!

ज़रा सुना अजान, पढ़कर बता तो कलमा,

दूसरी आवाज़ थी जल्दी टुकड़े करके पैक करो,

अच्छा सुनो, पहले कपड़े उतारकर चैक करो,

अगर गैर मुस्लिम है, तो जिंदगी तबाह करेंगे

इस काफ़िर को मारेंगे, बीबी से निकाह करेंगे,

तसल्ली हो गई, जब छानबीन हो गई,

इंसानियत नंगी होकर ग़मगीन हो गई।

लात घूसो से, गोलियों से लहूलुहान कर दिया,

मौत ने ज़िन्दगी को हैरान कर दिया,

बगल में बीबी पागल सी हो गई,

बेटी बाप की लाश देखकर खो गई,

तभी सहमी सी बेसुध बेटी बोली,

वाह रे ख़ुदा तेरी आंख मिचोली,

धर्म मजहब, इंसान और ना घर बनाना,

अगले जन्म में हमें जानवर बनाना। 

फिर जानवरों के लिए मस्जिद मंदिर न होगा

किसी आतंकी में मन में काफ़िर न होगा।

मनी नमन✒️