“दरकता जोशीमठ” – युवा कवि मदन मोहन तिवारी ‘पथिक’ की स्वरचित कविता

दरकता जोशीमठ 

जमीं के फटने से धीरे धीरे सरक रहा है।

कुछ तो हुआ है जोशीमठ दरक रहा है।

अस्तित्व इसका अब खतरे की जद में,

वक्त आज इसका वजूत परख रहा है।

नरसिंह की धरती अब फंट सी रही है।

शंकराचार्य काया अब छंट सी रही है।

भूमि अलौकिक सौंदर्य की इस मठ की,

टुकड़ों टुकड़ों में अब बंट सी रही है।

जल की धारा गर्भ से फूट रही इसके।

दीवारें मकानों पर से टूट रही इसके।

कई यादें समेटे हुए है ये शहर खुद पर,

कई मुसीबतें सर पर टूट रही इसके।

खुशी इसके चेहरे की मन्द होने को है।

मुख विष्णु प्रयाग का बन्द होने को है।

बस धीरे धीरे दम घुट रहा इस शहर का,

सासें इसके सीने पर चन्द होने को है।

क्या ये फल मानवीय क्रियाकलापों का।

क्या होगा अब किए हुए पश्चतापों का।

अब कुदरत से समझौता कहां संभव,

क्या होगा जोशीमठ के उन ख्वाबों का।

मदन मोहन तिवारी,पथिक