मुसीबत के वक्त दूसरों के काम आना ही इंसानियत है।कोरोनाकाल ने हमें जिंदगी के असल मायने से रुबरु कराया है। लाँकडाउन में जब परिवहन तक ठप पड़ गया तब देवप्रयाग के गणेश भटृ लोगों के लिए फरिश्ता बन कर सामने आए। जब मरीजों को एंबुलेंस सुविधा उपलब्ध न हो सकी तो गणेश ने अपनी गाड़ी को ही एंबुलेंस बना दिया और लोगों की सेवा में लग गए।सेवा का सिलसिला आज भी थमा नहीं है।
पहाड़ एक्सप्रेस के संपादक राहुल जोशी से बात करते हुए गणेश भटृ ने बताया की वह एक कम्प्यूटर इंस्टीटयूशन चलाते हैं।मार्च में जब लाँकडाउन लगा तो सब काम धंधे बद हो गए।लोगों का घरों से बाहर निकालना बंद हो गया। ऐसे में सबसे ज्यादा दिक्कत मरीजों को हुई। एक दिन उन्हें पता चला एक गर्भवती महिला को उपचार की आवश्यकता है। एंबुलेंस के उपलब्ध न होने के कारण स्वास्थ्य केन्द्र जाने का कोई प्रबंध नहीं हो पा रहा है। ऐसे में वह अपने निजी वाहन से महिला को श्रीनगर अस्पताल ले गए।फिर उन्हें अहसास हुआ कि मुसीबत के इस वक्त में न जाने कितने ऐसे लोग होंगे जिनको मदद की आवश्यकता होगी। बस फिर यहीं से गणेश ने लोगों की मदद करने की ठानी। गणेश आगे बताते हैं कि उन्हें शुरूआत में काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। लाँकडाउन के कारण पुलिस ने एनएच-58 पर उनकी गाड़ी कई बार रोकी, लेकिन जब गणेश ने उन्हें मरीजों की परेशानी बताई तो पुलिस ने उनका सहयोग किया। गणेश बताते हैं कि जब वह मरीज़ को घर से ले जाते थे तो मरीज़ का चेहरा मुरझाया सा होता था आँख में आंसू होते थे। वह मरीज़ को अस्पताल पहुंचा के तब तक उनके साथ रहते थे जब तक उनका पूरा उपचार होता था। उसके बाद मरीज़ के चेहरे की जो खुशी होती थी तकलीफ से उभरने की, वह उन्हें प्रेरित करती थी और लोगों की मदद करने के लिए। लाँकडाउन में 42 दिनों में गणेश भटृ ने 51 मरीजों को अस्पताल पहुंचाया।इस कार्य में उनके 4 दोस्तों ने भी उनका सहयोग किया। गणेश ने इंसानियत की मिसाल कायम की है। पहाड़ एक्सप्रेस की टीम गणेश व उनके साथियों के ज़ज्बे को सलाम करती है।