“हाए रे सरकार” – सरकार के ऊपर तंज करती त्रिभुवन सिंह फर्स्वाण की स्वरचित कविता जरूर देखें

हाए रे सरकार

सुन रे सरकार,

तू है समस्त प्रदेश की जनता का द्वार,

पर क्यों है बंद तेरा ये दरबार,

कब होगा यहां बेरोजगारों का उद्धार,

हाए रे सरकार।

पांच साल तेरी ही सत्ता विराजमान,

फिर भी न मिले युवाओं को मान सम्मान,

आखिर क्यों ? पूछे हर कोई ये सवाल,

कब पेश करेगी सरकार अपनी मिशाल,

हाए रे सरकार।

चार साल बाद तुझे अब याद आई बेरोजगारी,

वादे किए हजारों को देने का रोजगार।

खुश हुए ये सुन सभी बेरोजगार,

मानो अब होगा इनका भी उद्धार।

निकले विज्ञापन लाखों ने भर दिए आवेदन,

कुछ परीक्षाएं हुई संपन्न बाकी रह गए सन्न।

परिणाम का दिन भी आया हो गए कुछ बेरोजगार पास,

अब बारी थी ज्वाइनिंग की जो बस रह गई एक आस।

कर रहा चयनित बेरोजगार ज्वाइनिंग पाने का इन्तजार,

बीत गए महीनों कहीं बीत ना जाए कईं साल।

पर सोया है विभाग और मस्त है चुनाव अभियान में सरकार,

फिर कैसे होगा हम चयनित बेरोजगारों का उद्धार। 

हाए रे सरकार।

अब आया पांचवा साल याद आई फिर बेरोजगारी,

सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनो हो गए चुस्त।

लगे चलने खूब आरोप प्रत्यारोप के वार,

पर फिर भी मिली तो सिर्फ बेरोजगारों को हार।

हाए रे सरकार।

यहीं पूछते तुझसे हम युवा कब होगा सपना साकार,

झूठे वादे ना चलेंगे अब न सुनेंगे झूठी बात,

अब तो जागो रे सरकार सुनो हम युवाओं की मन की आवाज,

तभी तो करेगा हमारा ये उत्तराखण्ड, पूरे भारतवर्ष पर राज।

त्रिभुवन सिंह फर्स्वाण