मर्दनी – बेटियों पर बढ़ते हुए अत्याचारों को देखते हुए मदन मोहन तिवारी ‘पथिक’ द्वारा लिखी गई स्वरचित कविता जरूर पढ़ें

निर्भया, हाथरस, उसके बाद ना जाने कई और आज अंकिता और आगे भी ना जाने कितने।। हालात बदलते रहेंगे मैं और आप ऐसे ही बस एक बहन बेटी इस खतरनाक दरिंदगी, हैवानियत का शिकार होकर चले जाने पर ट्विटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि में पोस्ट लिखते रहेंगे और अन्य लोग दुख संवेदना व्यक्त करते रहेंगे। लेकिन क्या दुख व्यक्त कर देना ही न्याय है एक तरफ से युवा जोश सड़कों बाजारों में आक्रोश रैली निकालता रहेगा व्हाट्सएप पर स्टेटस लगते रहेंगे और न्याय के नारे लगते रहेंगे।। बस यह दरिंदगी की  परम्परा चलती रहेगी पर होगा कुछ नहीं।। धीरे धीरे सब भूल जाएंगे। मैं भूल जाऊंगा, आप भूल जाओगे, पीड़ित के माता पिता थक हार कर न्याय की परिभाषा ही भूल जाएंगे।। होगा कुछ नहीं।

बस हो सकता है तो बस एक कार्य अब हर बेटी को, हर बहन को, अपने न्याय के लिए खुद आगे आना होगा। अब हर बेटी को उस माता भगवती की तरह त्रिशूल उठाना होगा और महिशाशुर रूपी इन  दैत्यों का नाश स्वयं करना होगा। अपनी समस्त बहन बेटियों को जगाने के लिए चंद पंक्तियां लिख रहा हूं और समस्त साथियों से अनुरोध की मुझे कोई वाह वाही नहीं चाहिए बस जो भी इसे पढ़े अपनी वॉल पर शेयर करे और इसे भारत की हर बेटी तक पहुंचने का प्रयास करे जिससे हर बेटी अपने प्राणों की रक्षा अब स्वयं कर सके।

 मर्दनी

आंख को उठा के तू, जुबां से तू भी बात कर,
जहां भी चंड मुंड हैं, त्रिशूल से आघात कर।
ये मौन अपना तोड़ देे, तू व्याधियों को मोड़ देे,
दानवों को खत्म कर, धड़ों को इनके काट कर।।
तू आदिशक्ति बन दिखा, प्रचण्ड रूप धार कर,
युद्ध में लड़कर दिखा, इन दुश्मनों को मार कर।
ना डर कभी ना मर कभी, तू घाव से उबर अभी,
सम्मान को बचा स्वयं, तू खड्ग से प्रहार कर।।
तू व्यर्थ ना समय गंवा, बेहराें को यूं पुकार कर,
तू न्याय की शुरवात है, ना न्याय की गुहार कर।
ये लोक लाज छोड़ देे, इन बन्दिशों को तोड़ देे,
अब वक्त है संहार का, तू वार बार बार कर।।
रक्तबीज फैले कई यहां, तू शेर सी दहाड़ कर,
तू रक्त पीकर के दिखा, तू खूब चीर फाड़ कर।
तू घमंड इनका तोड़ देे, सब हड्डियां मरोड़ देे,
इन दानवों को फेंक देे, जमीं से ही उखाड़ कर।।
मर्दनी बनकर दिखा, सिंह को भी उतार कर,
अबला का दाग त्याग देे, गूंज से ललकार कर।
तू आधार इस श्रृष्टि का, प्रयोग कर इस दृष्टि का,
खूब दर्द सह लिया, अब तू भी अत्याचार कर।।

मदन मोहन तिवारी, पथिक।। #अंकिता