उत्तराखंड में बेटियों के ऊपर बढ़ते अपराध को देखते हुए विपुल जोशी का लिखा गया यह लेख जरूर पढ़ें – “राम राज्य की कीमत चुकाता उत्तराखंड”

पांच दिन से गायब एक लड़की की हत्या हो जाती है लेकिन लड़की का पक्ष गरीब था और आरोपी प्रभावशाली परिवार से इसलिए पुलिस वाले इधर से उधर दौड़ाते रहे, ऐसे मामलों में पुलिस वालों का व्यवहार कैसा होता है वो किस तरह के प्रश्न पूछते हैं किस तरह जलील करते हैं ये बात दुनिया जानती है।

उत्तराखंड की सरकार “जो राम को लाए हैं हम उनको लाए हैं” गाने के साथ चुनाव पर उतरी थी लेकिन आप यकीन मानिए उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के आदर्शों को नहीं अपनाया, इस वक्त उत्तराखंड की स्थिति “रावण राज” से भी बदतर है क्योंकि रावण राज में भी माता सीता अशोक वाटिका में सुरक्षित थी जबकि उत्तराखंड का युवा सुरक्षित नहीं है।

मैंने पहले भी लिखा था उत्तराखंड पहाड़ी राज्य है जहां साल में कई गर्भवती महिलाएं हॉस्पिटल को ले जाते वक्त अपना दम तोड़ देती हैं या कई महिलाएं हॉस्पिटल में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं ना मिलने के कारण ना दम तोड़ देती है।
कुछ दिन पहले पिथौरागढ़ में एक अस्पताल के बाहर एक बच्चे ने अपने पिता की गोद में दम तोड़ दिया कारण फिर से वही क्योंकि उसे बेहतर सुविधाएं नहीं मिल पाई, अल्मोड़ा में एक डॉक्टर रात के वक्त शराब के नशे में धुत पाए गए तो ईलाज तो खैर वो क्या ही करते।

पहाड़ों में रोजगार के साधन नहीं है पहाड़ का युवा देवभूमि उत्तराखंड जैसी सुंदर जगह को छोड़कर पलायन करने को मजबूर है और बीच-बीच में अंकिता भंडारी के साथ जो हुआ इस तरह की घटनाएं तो जख्म पर नमक छिड़क देती हैं।

दर्जनों घोटाले और जिस तरह की वारदात प्रियंका भंडारी के साथ हुई उसको देखकर उत्तराखंड के लोगों को सोचना चाहिए की उन्हें कैसा जनप्रतिनिधि और कैसे मुद्दों पर सरकार चुननी है, अगर धर्म के नाम पर या शराब पीकर लोग वोट देते रहे तो स्थितियां और बदतर हो जायेंगी फिर चाहे किसी भी दल की सरकार बने।

ये मत सोचिएगा की ये दल खराब था वो दल अच्छा होगा खराब दरअसल आप और हम हैं, क्योंकि सभी दलों को पता है की कुछ लोग राम के नाम पर वोट दे देंगे कुछ लोग चुनाव से एक दिन पहले शराब पीकर वोट देंगे बाकी काम करो या ना करो क्या फर्क पड़ता है।

उत्तराखंड के लोगों को अपनी आवश्यकता के अनुसार अपनी परिस्थितियों को देखते हुए अपने मुद्दे बनाने होंगे और जो मुर्दों को पूरा करें उन्हें ही वोट देना होगा वरना तो हम ना जाने कब से गैर सेंड में राजधानी बनने का इंतजार कर ही रहे हैं।

कुछ माह पहले रक्षाबंधन का त्योहार था मेरे हाथों में अभी भी राखियां बंधी हुई हैं शायद ज्यादातर लोगों के हाथों में बंधी होंगी , तो शायद उन राखियों को बांधते हुए दिया हुआ वचन ही था जिसने मुझे ये सब लिखने पर मजबूर किया। क्योंकि मुझे मालूम हैं बदलाव फेसबुक,ट्विटर पर लेख लिखकर या हैशटैग चलाकर नहीं होते बल्कि जमीन पर होते हैं योजनाएं बनाकर। इस तरह के लेख लिखकर तो हम खुद को सांत्वना देते हैं और कई बार सोचते हैं हमने अपनी जिम्मेदारी निभा दी जो की बड़ी बेवकूफी भरी बात है।

कुछ साल पहले हैदराबाद की डॉक्टर प्रियंका रेड्डी की रेप के बाद हत्या कर दी गई थी उस दिन कुछ भी पंक्तियां लिखी थी, मुझे कहते हुए बड़ा अफसोस होता है की साल बदला हाल नहीं बदला।

नन्हीं कलियों को अब हम खार करेंगे
जेवर नहीं खंजर के साथ तैयार करेंगे

हम कल आज का हादसा भूल जायेंगे
और फिर नए हादसे तक इंतज़ार करेंगे

कितना बुरा मंजर होगा ज़रा ये सोचो तो
अदालतें अंधी होंगी फैसले अखबार करेंगे

हम बंदूक नहीं बस कलम उठा सकते हैं
हादसों से हमेशा आपको ख़बरदार करेंगे

पैसें वाले शहर बदल लेंगे रातों रात जोशी
पुलिस वाले बेगुनाहों को गिरफ्तार करेंगे

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